छत्तीसगढ़ के कांकेर में नक्सलियों ने एक बार फिर अपनी खूनी सोच दिखाई है। 25 साल के मनेश नुरेटी को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया क्योंकि उसने 15 अगस्त को स्कूल परिसर में बने नक्सली स्मारक पर तिरंगा फहराया था।
बिनागुंडा गांव के रहने वाले मनेश नुरेटी ने स्वतंत्रता दिवस पर ग्रामीणों के साथ मिलकर झंडा फहराया था। अगले ही दिन 16 अगस्त को नक्सलियों ने उसे पकड़ लिया और जन अदालत लगाकर गला घोंटकर मार डाला। 17 अगस्त को नक्सलियों ने बैनर लगाकर हत्या की जिम्मेदारी ली और उसे पुलिस मुखबिर करार दिया।
नक्सलियों ने बैनर में गांव के सरपंच रामजी धुर्वा और अन्य ग्रामीणों को भी धमकाया। उन पर आरोप लगाया गया कि वे पुलिस और डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) के जवानों की मदद कर रहे हैं। नक्सलियों ने बिनागुंडा मुठभेड़ के लिए बैजू नरेटी को जिम्मेदार ठहराते हुए उसे भी जान से मारने की धमकी दी।
मनेश नुरेटी कोई मुखबिर नहीं था, बल्कि गांव के विकास के लिए काम करने वाला युवक था। उसने ग्रामीणों को संगठित किया और देशभक्ति की भावना जगाई। यही बात नक्सलियों को खल गई। दरअसल, तिरंगा और राष्ट्रभक्ति नक्सलियों की हिंसक और देशविरोधी सोच के खिलाफ सबसे बड़ा जवाब है।
आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों ने पिछले 25 साल में 1820 से ज्यादा हत्याएं की हैं। इनमें आम नागरिक, जनप्रतिनिधि और सुरक्षाकर्मी शामिल हैं। सबसे ज्यादा हत्या बीजापुर जिले में हुई है। यह साफ दिखाता है कि नक्सली जनता के दुश्मन बन चुके हैं।
क्या आजादी के 78 साल बाद भी तिरंगा फहराना अपराध है? नक्सलियों की मानसिकता यही बताती है। वे जनता की आवाज को दबाना चाहते हैं और डर के सहारे शासन करना चाहते हैं। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। सुरक्षा बल लगातार कार्रवाई कर रहे हैं और बड़ी संख्या में नक्सली मारे जा रहे हैं या आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
नक्सलियों ने एक देशभक्त युवक की जान ली है, लेकिन यह घटना साबित करती है कि तिरंगे से वे सबसे ज्यादा डरते हैं। अब समय आ गया है कि नक्सली आतंक को जड़ से खत्म किया जाए ताकि बस्तर की हर पहाड़ी और हर गांव में तिरंगा शान से लहराए और मनेश जैसे युवाओं की कुर्बानी बेकार न जाए।
रिपोर्ट
शोमेन चंद्र