मूलनिवासी दिवस: जनजाति समाज के विरुद्ध वैश्विक षड्यंत्र

विश्व मंच पर हिंदुओं की संख्या कम करने और कन्वर्जन को वैध दिखाने का नया तरीका बना मूलनिवासी विमर्श।

The Narrative World    07-Aug-2025
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भारत जैसे राष्ट्र में अलग देश की मांग का सबसे मजबूत आधार धार्मिक है और 1947 में ब्रिटिश ईसाइयों द्वारा भारत के तीन टुकड़े इसी धार्मिक आधार पर किए गए। इसीलिए यह प्रश्न उठता है कि क्या व्यापक स्तर पर जनजाति समुदायों की हिन्दू धर्म से अलग पहचान खड़ी की जा रही है?
 
दरसअल जनजातीय समाज के लिए कई विदेशी संस्थाएं अलग धर्म कोड के लिए या अगली जनगणना में हिन्दू धर्म से अलग धर्म की मांग के लिए संघर्षरत हैं, ताकि विश्व पटल पर हिंदुओं की संख्या को कम किया जा सके और मिशन संस्थाओं द्वारा इन नए धर्म को ईसाई धर्म में मिलाया जा सके, जो धार्मिक अलगाववाद का कारण बन सके।
 
विभिन्न राष्ट्र विरोधी शक्तियां इसी दिशा मे काम करती हुई दिखाई दे रही हैं। हमारे देश के विभिन्न राज्यों मे चल रहे छोटे-बड़े आंदोलन भी इस आंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा बनाते जा रहे हैं।
 
भारत के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्यों में जनजाति प्रतिशत किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे बड़ी राजनीतिक इकाई है। इसीलिए इन राज्यों में जनजातियों का धर्म परिवर्तन करके उनके अहिन्दूकरण का कार्य भविष्य के राजनीतिक संतुलन को बिगाड़ने के उद्देश्य से किए जा रहे है।
 
उत्तरपूर्व के राज्यों की स्थिति तो अब पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी है कि किस तरह वहां ईसाई मिशनरियों ने स्थानीय जनजातियों के व्यापक स्तर पर मतांतरण कराकर हिंदुओं को ही अल्पसंख्यक कर दिया है। यह साफ दर्शाता है कि यह सबकुछ जनजातीय समुदायों की पहचान को एक अलग पहचान देने का षड्यंत्र है। वहीं दूसरी ओर उनका मतांतरण कर उनको एक धर्म के अंदर लाकर धार्मिक अलगाव के बीज बोए जा रहे हैं।
 
यदि इन सभी विघटनकारी शक्तियों को सूक्ष्मता से अध्यन किया जाये तो औपनिवेशिक और धार्मिक शक्तियों द्वारा भारत के जनजातियों को एक धर्म में लाने का प्रयास है और दूसरी ओर उनकी विशिष्ट पहचान को खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि ये आपस में संगठित न हो और इनमें आपसी संघर्ष बना रहे। यही कारण है कि देश में मूलनिवासी दिवस को विभिन्न आयोजन किए जाते हैं जिसमें मतांतरित ईसाई तो स्वयं को मूलनिवासी कहते हैं, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े हुए समूहों को बाहरी बता दिया जाता है।
 
विश्व मूलनिवासी दिवस पर भारत का आधिकारिक मत
 
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भारत विश्व के मूलनिवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा को मान्यता देता है और उसका समर्थन करता है। परन्तु भारतीय परिपेक्ष्य में, भारत के सभी नागरिक मूलनिवासी हैं, यही भूमिका इस मुद्दे को लेकर भारत की रही है। इसलिए 'मूलनिवासी' की यह अंतरराष्ट्रीय अवधारणा भारतीय संदर्भ पर लागू नहीं होती। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लाए गए विश्व मूलनिवासी लोगों के कन्वेंशन (Indigenous and Tribal Peoples Convention, 1989) के संबंध में वही प्रस्तुतियाँ दी हैं जिसपर 1989 से अनुसमर्थन (ratification) की प्रक्रिया का प्रारम्भ हुआ।
 
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित मतदान में 13 सितंबर 2007 को भारत की तरफ से श्री अजय मल्होत्रा ने भारत का आधिकारिक मत रखा, जो निम्न है:
 
A) WGIP इस विषय पर सभी देशों की जटिल परिस्थितियों के कारण आम सहमति बनाने में असफल रहा है।
 
B) WGIP "इंडिजिनस अथवा मूलनिवासी समुदाय" को परिभाषित करने में असमर्थ रहा है।
 
C) इस घोषणापत्र का संदर्भ केवल उन राष्ट्रों के लिए है जहाँ औपनिवेशिक अथवा आक्रमणकारी शक्तियों से संबंधित बहुसंख्यक जनसंख्या के साथ-साथ वहां की मूल (देशज/देशोतपन्न) अल्पसंख्यक जनता भी रहती है, जिसने अभी भी अपनी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक पहचान बना के रखी है, अथवा वो भी इन देशों के अंदर ही किसी अलग भौगोलिक क्षेत्र में रहने को मजबूर हैं।
 
D) इस घोषणा पत्र के "अपने क्षेत्रीय अधिकारों की मान्यता/Right to self-determination/rule" जैसे उपबंधों का संबंध उन राष्ट्रों के लिए है, जो आज भी विदेशी शक्तियों के अधीन है, ना कि उन संप्रभु राष्ट्रों के जहां विभिन्न समुदाय प्रजातांत्रिक प्रतिनिधित्व के अनुसार शासित हैं, ऐसे उपबंध इन राष्ट्रों की भौगोलिक एकता (अखंडता) को कमजोर करते हैं।
 
E) इस घोषणा पत्र के अनुच्छेद 46 के तहत ये अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत किसी भी राष्ट्र के लिए कानूनी बाध्यता नहीं है, इसीलिए भारत इस घोषणा पत्र के समर्थन में मतदान कर रहा है।
 
उपरोक्त कथन के अनुसार यह पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है कि भारत का आधिकारिक मत यही है कि भारत के सभी नागरिक भारत के मूलनिवासी हैं, लेकिन भारत विश्व के मूलनिवासियों के प्रति सहानुभूति रखता है और उनके संवर्धन के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करता है। इसका अर्थ यह भी है कि भारत में रहने वाले वनवासी समाज से लेकर नगरीय समाज तक सभी नागरिक भारत के मूलनिवासी हैं।