कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ वाला कथित सबूत अब खुद कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गया है। मेटाडेटा की जांच में खुलासा हुआ है कि यह डॉक्यूमेंट भारत में नहीं बल्कि म्यांमार में तैयार किया गया। इससे कांग्रेस पर एक बार फिर विदेशी हाथों से साजिश रचने का आरोप लग रहा है।
कैसे हुआ खुलासा?
10 सितंबर को X (पहले ट्विटर) पर चर्चित हैंडल ‘खुर्पेन्च’ ने 7 ट्वीट्स की एक सीरीज में राहुल गांधी के इस कथित ‘वोट चोरी प्रूफ’ का सच उजागर किया। राहुल ने यह डॉक्यूमेंट 7 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस में पेश किया था और अपनी वेबसाइट पर भी डाला था। इसमें 3 PDF फाइलें थीं – अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ वर्जन।
हैंडल ने इन फाइलों का मेटाडेटा खंगाला। मेटाडेटा यानी किसी भी फाइल की असली पहचान, जिसमें उसका निर्माण समय, तारीख, सॉफ्टवेयर और टाइम जोन जैसी अहम जानकारियां दर्ज होती हैं।
जांच में सामने आया कि तीनों फाइलें म्यांमार स्टैंडर्ड टाइम (MMT) के हिसाब से बनी हैं। यह टाइम जोन यूटीसी +6:30 पर आधारित है जबकि भारत का टाइम जोन यूटीसी +5:30 है। साफ है कि अगर डॉक्यूमेंट भारत में बना होता तो इसमें इंडियन स्टैंडर्ड टाइम (IST) दर्ज होता, न कि म्यांमार का।
कांग्रेस की सफाई और आईटी सेल की एक्टिविटी
खुलासे के बाद कांग्रेस IT सेल और ट्रोल आर्मी तुरंत एक्टिव हो गई। पार्टी प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने सफाई दी कि यह सिर्फ सॉफ्टवेयर की “कंफिगरेशन गड़बड़ी” या “एडोबी बग” का नतीजा है। लेकिन ‘खुर्पेन्च’ ने इसका कड़ा जवाब देते हुए कहा कि एडोबी ऐसे बग्स तुरंत फिक्स करता है और यह गड़बड़ी एडोबी इलस्ट्रेटर में कभी रही ही नहीं।
यह भी बताया गया कि कुछ कांग्रेस समर्थकों ने लाइटरूम नामक सॉफ्टवेयर के पुराने बग का हवाला दिया, लेकिन वह बग 14 साल पहले ही खत्म हो चुका है। यानी कांग्रेस की सफाई खोखली साबित हुई।
राहुल गांधी पर फिर उठे विदेशी कनेक्शन के सवाल
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी पर विदेशी कनेक्शन के आरोप लगे हैं। कांग्रेस ने पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू साइन किया था, जिस पर अब तक रहस्य बना हुआ है। राहुल गांधी की विदेश यात्राएं भी अक्सर संदेह के घेरे में रहती हैं क्योंकि वे बिना आधिकारिक जानकारी दिए विदेश रवाना हो जाते हैं।
कई बार यह भी सामने आया कि उनकी सोशल मीडिया कैंपेनिंग में कज़ाखस्तान, रूस और इंडोनेशिया से संचालित बॉट्स का इस्तेमाल हुआ। अब ‘वोट चोरी’ वाला मामला भी इसी पैटर्न को मजबूत करता है कि कांग्रेस लगातार देश के चुनावी तंत्र और संस्थाओं पर सवाल उठाकर जनता में अविश्वास फैलाना चाहती है।
कांग्रेस की रणनीति पर गंभीर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों से साफ झलकता है कि कांग्रेस विदेशी सहयोग से भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। जब-जब राहुल गांधी मुश्किल में फंसते हैं, वे विदेशी धरती या विदेशी ताकतों से जुड़े दिखते हैं।
कांग्रेस के तुर्की जैसे भारत विरोधी देशों में दफ्तर खोलने की योजना, चुनाव आयोग को निशाना बनाने की रणनीति और बिना सबूत बार-बार “वोट चोरी” का नारा लगाना जनता के मन में यह संदेश देता है कि पार्टी अब केवल प्रोपेगेंडा के जरिए सत्ता पाना चाहती है।
जनता में बढ़ा अविश्वास
राहुल गांधी के इस नए विवाद ने कांग्रेस की छवि को और नुकसान पहुंचाया है। म्यांमार में बने डॉक्यूमेंट ने यह साबित कर दिया है कि विदेशी मदद और साजिशों के जरिए भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने का खेल लगातार जारी है। जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि आखिर कांग्रेस और राहुल गांधी का भरोसा भारत की जनता और संस्थाओं में है भी या नहीं।
लेख
शोमेन चंद्र