नेपाल एक बार फिर राजनीतिक भूचाल से गुजर रहा है। महज दो दशकों की लोकतांत्रिक यात्रा में दर्जनों सरकारें टूटीं और बनीं, लेकिन इस बार का आंदोलन अलग है। सितंबर की शुरुआत में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने जब 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगाया तो लगा था कि यह कदम व्यवस्था संभालने के लिए है, लेकिन यह सरकार के लिए आत्मघाती साबित हुआ।
क्यों भड़का गुस्सा?
नेपाल के युवाओं का गुस्सा अचानक नहीं फूटा। वर्षों से सत्ता में बैठे नेताओं पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगते रहे हैं। मंत्रालयों और सरकारी संस्थानों में नेताओं के रिश्तेदारों की भरमार है। टेंडर और ठेके पार्टी से जुड़े चेहरों को दिए जाते हैं। बेरोजगारी बढ़ रही है और रोजाना हजारों युवा रोजगार की तलाश में खाड़ी देशों और भारत की ओर पलायन कर रहे हैं।
ऐसे माहौल में सोशल मीडिया युवाओं की आवाज़ बन चुका था। टिकटॉक और इंस्टाग्राम पर नेताओं के बच्चों की विदेशों में मौज-मस्ती और आम युवाओं की बेरोजगारी की तुलना वाले वीडियो वायरल हो रहे थे। यह सब सरकार की नाकामियों को उजागर कर रहा था। लेकिन सरकार ने आलोचना सुनने के बजाय इन प्लेटफॉर्म्स पर ही बैन लगा दिया। यही चिंगारी पूरे देश में आग बन गई।
जेन-ज़ी का विद्रोह
काठमांडू की सड़कों पर उतरे युवाओं में ज्यादातर स्कूल और कॉलेज के छात्र, आईटी प्रोफेशनल और गिग वर्कर थे। इन्हें अब "जेन-ज़ी प्रोटेस्ट" कहा जा रहा है। यह आंदोलन किसी राजनीतिक दल के इशारे पर नहीं बल्कि युवाओं के अपने गुस्से और संगठन से चला।
हजारों युवा हाथों में प्लेकार्ड लेकर नारे लगा रहे थे – “हमें ऐप बैन करने वाले नेता नहीं, भविष्य बनाने वाले नेता चाहिए।” युवाओं के लिए यह लड़ाई सिर्फ सोशल मीडिया की नहीं बल्कि सम्मान और बराबरी की थी।
भ्रष्टाचार और पाखंड पर हमला
युवाओं का सबसे बड़ा तंज नेताओं के परिवारों पर था। एक लोकप्रिय टिकटॉक वीडियो में दिखाया गया कि कैसे मंत्री बच्चों की यूरोप में छुट्टियां मनाने की तस्वीरें डालते हैं, जबकि आम नेपाली परिवार अपने बच्चों को खाड़ी देशों भेजने के लिए कर्ज लेता है। यह असमानता गुस्से का सबसे बड़ा कारण बनी।
हैशटैग जैसे #NepoKids और #NepoBabies तेजी से वायरल हुए। युवाओं का कहना था कि यह आंदोलन बाहर से थोपा नहीं गया, बल्कि उनकी अपनी पीड़ा और अपमान से जन्मा है।
क्या यह कलर रिवॉल्यूशन है?
नेपाल में विपक्षी दल और कुछ विश्लेषक इस आंदोलन को अमेरिकी डीपस्टेट या किसी विदेशी साजिश से जोड़ रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि यह गुस्सा पूरी तरह स्थानीय कारणों से उपजा। न भ्रष्टाचार बाहर से आया है, न बेरोजगारी, न नेताओं का पाखंड।
जेन-ज़ी ने साफ कहा है – “यह हमारी लड़ाई है। हम किसी अमेरिका या चीन के लिए नहीं बल्कि अपने भविष्य के लिए सड़कों पर हैं।”
लोकतंत्र के लिए सबक
नेपाल की संसद जलाने और नेताओं के घरों पर हमले जैसी घटनाएं जरूर हुईं, लेकिन आंदोलन की जड़ें गहरी और सच्ची हैं। यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि एक लोकतांत्रिक सुधार की मांग है।
नेपाल का यह आंदोलन बताता है कि आज की डिजिटल पीढ़ी को नजरअंदाज करना किसी भी सरकार के लिए खतरनाक हो सकता है। सोशल मीडिया बैन ने यह साबित कर दिया कि आवाज़ दबाने की कोशिश ही सबसे बड़ा विस्फोटक बन सकती है।
नेपाल अब चौराहे पर खड़ा है। सवाल यह है कि क्या नेता इसे अवसर मानकर ईमानदारी से सुधार करेंगे या एक और सरकार गिरने और बनने का सिलसिला चलता रहेगा।
लेख
शोमेन चंद्र