पश्चिम बंगाल सरकार ने 2 अप्रैल को तीन दशक से चल रही औद्योगिक प्रोत्साहन योजनाओं को अचानक खत्म कर दिया। यह फैसला 1993 से लागू सभी योजनाओं को रद्द करता है और वह भी पिछली तारीख से। इस कदम ने न सिर्फ उद्योग जगत का भरोसा तोड़ा बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा संकट खड़ा कर दिया।
नई अधिसूचना पश्चिम बंगाल प्रोत्साहन योजनाएं और दायित्व निरसन विधेयक 2025 के तहत 1993 से 2021 तक की सभी औद्योगिक प्रोत्साहन योजनाएं समाप्त कर दी गईं। जिन कंपनियों ने निवेश और विस्तार इन्हीं वादों के भरोसे किया था, उन्हें अब भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। दलमिया और बिड़ला समूह ने अकेले 430 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान जताया है। कई कंपनियां अब कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी हैं।
यह पहली बार नहीं है जब बंगाल की राजनीति ने उद्योग को धोखा दिया। 35 साल तक वाम मोर्चे ने पूंजी को दुश्मन मानकर औद्योगिकरण को बर्बाद किया। मजदूर आंदोलनों और हिंसा ने उद्योगपतियों को राज्य से भागने पर मजबूर किया। कभी देश का दूसरा सबसे औद्योगिक राज्य रहे बंगाल से बिरला, सिंहानिया जैसे बड़े घराने पलायन कर गए।
इसके बाद आई तृणमूल कांग्रेस। ममता बनर्जी ने सत्ता में वापसी का रास्ता टाटा मोटर्स की सिंगुर परियोजना का विरोध करके बनाया। वही प्लांट जो राज्य की औद्योगिक साख को लौटाने का मौका था, राजनीतिक हठ का शिकार हो गया।
2011 से 2025 तक 6600 कंपनियां बंगाल छोड़ चुकी हैं जिनमें 110 सूचीबद्ध कंपनियां शामिल हैं। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि केवल पिछले वित्त वर्ष में ही बंगाल को महज 2534 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मिला। राज्य शीर्ष दस निवेश गंतव्यों में भी जगह नहीं बना पाया।
सरकार इस कदम को गरीबों और वंचित वर्गों के लिए संसाधन जुटाने की कवायद बता रही है। लेकिन हकीकत यह है कि उद्योग बंद करके गरीबी दूर नहीं होगी। उद्योग ही रोजगार पैदा करते हैं और पूंजी लाते हैं। ममता सरकार की नीति उद्योग से बैर और वोट बैंक तुष्टिकरण की राजनीति को साफ दर्शाती है।
कानूनी जानकारों का कहना है कि यह कानून प्रॉमिसरी एसटॉपल और लीजिटिमेट एक्सपेक्टेशन जैसे सिद्धांतों का उल्लंघन करता है जिन्हें भारतीय न्यायालय लंबे समय से मान्यता देते आए हैं। उद्योगों ने सरकार के लिखित वादों पर भरोसा कर निवेश किया। अब उन्हें नकारना न सिर्फ मनमाना बल्कि असंवैधानिक भी है। यह अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1)(g) दोनों का उल्लंघन है।
पिछले कुछ सालों में बंगाल की कानून व्यवस्था पहले से ही चरमराई है। एसएससी भर्ती घोटाले, कटमनी और लगातार सामने आते भ्रष्टाचार के मामलों ने सरकार की साख गिराई है। अब उद्योगों को दिए प्रोत्साहनों की वापसी यह साबित करती है कि सरकार रोजगार और विकास की बजाय केवल अपनी राजनीतिक जमीन बचाने में लगी है।
एक ओर केंद्र सरकार उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसी नीतियों से निवेश और एफडीआई आकर्षित कर रही है, वहीं ममता बनर्जी बंगाल को पिछड़ेपन की ओर धकेल रही हैं। उद्योगों को पीठ में छुरा घोंपने वाला यह फैसला न सिर्फ वर्तमान को बल्कि आने वाले समय में लाखों युवाओं के भविष्य को भी संकट में डाल देगा।
पश्चिम बंगाल का उद्योग आज भी वही सवाल पूछ रहा है - क्या यहां निवेश करना सुरक्षित है? ममता सरकार के इस फैसले के बाद इसका जवाब साफ है - नहीं!
लेख
शोमेन चंद्र