बीते दिनों लद्दाख में जिस तरह से हिंसा की घटना देखी गई, उसने एक बार फिर राष्ट्रीय मीडिया में सोनम वांगचुक का नाम चर्चा में ला दिया है। हालाँकि सोनम वांगचुक को एनएसए के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया है, लेकिन जिस तरह से यह घटना सामने आई है, वह सोनम वांगचुक के वास्तविक चेहरे को उजागर करता हुआ दिखाई दे रहा है।
लद्दाख के DGP एसडी सिंह जामवाल ने शनिवार को कहा कि सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक का पाकिस्तान इंटेलीजेंस ऑपरेटिव (PIO) के एक सदस्य से संपर्क था। PIO मेंबर को पुलिस ने कुछ दिनों पहले ही पकड़ा था। वह जरूरी जानकारी पाकिस्तान भेज रहा था। हमारे पास इसका रिकॉर्ड है।
यही नहीं वांगचुक पाकिस्तान के न्यूजपेपर डॉन के एक इवेंट कार्यक्रम में शामिल भी हुए थे। इसके अलावा वे बांग्लादेश भी जा चुके हैं। फिलहाल इन सभी मामलों की जांच जारी है।
वांगचुक को शुक्रवार दोपहर पुलिस ने उनके गांव उल्याकटोपो से गिरफ्तार किया था। उन्हें एयरलिफ्ट कर राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल भेजा गया। वांगचुक पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगाया गया है, जिसके तहत लंबे समय तक बिना जमानत हिरासत में रखा जा सकता है।
दरअसल वर्ष 2009 में एक फ़िल्म आई थी, थ्री इडियट्स। इस फ़िल्म में आमिर खान ने एक किरदार निभाया था, 'फुंसुक वांगड़ू' का। यह किरदार सिनेमा पर काफी चर्चित हुआ था, तथा इस किरदार को शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करने वाला एक आधुनिक क्रांतिकारी के रूप में दिखाया गया था।
इसके बाद मुख्यधारा की मीडिया में एक नाम सामने आया, लद्दाख के सोनम वांगचुक का, मीडिया में कहा गया कि थ्री इडियट्स के फुंसुक वांगड़ू का किरदार असल जिंदगी के सोनम वांगचुक से ही प्रेरित था। इसके बाद तो जैसे देशभर के युवाओं के बीच सोनम वांगचुक एक हीरो की तरह पेश किए गए, उन्हें युवाओं के बीच एक प्रेरणास्रोत माना गया।
लद्दाख के निवासी सोनम वांगचुक को मीडिया ने इनोवेटर, शिक्षाविद और इंजीनियर के रूप में पेश किया है, साथ ही वो स्वयं को पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में स्थापित भी कर चुके हैं। लेकिन इसकी पूरी कहानी क्या है? आखिर यह सब कैसे हो रहा है? चलिए समझते हैं।
सोनम वांगचुक ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लद्दाख में ही एक एनजीओ शुरू किया, जिसका नाम है स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL), सबसे बड़ा प्रश्न यही उठता है कि इस एनजीओ का कनेक्शन क्या है और कहाँ-कहाँ से है? सारी कहानी यहीं से निकल कर सामने आती है।
जब इस संस्था की तह पर जाकर इसे देखते और समझते हैं, तो पता चलता है कि इसके तार ऐसी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं जिसने 1970 के दशक में 'डीप स्टेट' के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया।
1988 में सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित SECMOL के संबंध 'फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स' से जुड़े हुए हैं। अब यह फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स ऐसी संस्था है, जिसका फाउंडर पॉल श्रीवास्तव है, जो 'द क्लब ऑफ रोम' का को-प्रेसिडेंट है। द क्लब ऑफ रोम के माध्यम से ही 1970 के दशक में पहली बार 'जलवायु संकट' की बात उठाई गई थी, जो इनकी 1971 की रिपोर्ट 'लिमिट्स ऑफ ग्रोथ' में सामने आई। इसमें दुनिया की अत्यधिक आबादी की बात भी कही गई थी।
यह संस्था सीधे तौर पर अमेरिका के रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित एवं स्थापित की गई थी। दरअसल रॉकफेलर फाउंडेशन उन्हीं संस्थाओं में से एक है जो डीप स्टेट और सीआईए से जुड़ कर कार्य करती हैं, एवं दुनिया के तमाम देशों में अपना प्रोपेगेंडा फैलाने का काम करती हैं।
सिर्फ रॉकफेलर ही नहीं, सोनम वांगचुक से जुड़े अन्य सहयोगी भी संदिग्ध दिखाई देते हैं। इसमें अगला नाम करुणा नामक एक एनजीओ का भी है, जिसके द्वारा सोनम वांगचुक की संस्था को फंड किया गया है। करुणा फाउंडेशन की इकाई 'करुणा यूएसए' का तो सीधा संबंध फोर्ड फाउंडेशन से है, जो रैमन मैग्सेसे जैसे पुरस्कार एवं डीप स्टेट से जुड़ा हुआ है।
करुणा यूएसए की निदेशक इवोन चेन द्वारा फोर्ड फाउंडेशन के लिए एक विशेष प्रोग्राम भी चलाया जाता है। यह मात्र संयोग ही नहीं हो सकता कि जिस रॉकफेलर और फोर्ड फाउंडेशन का सम्बंध रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से जुड़ा हुआ है, वही पुरस्कार 2018 में सोनम वांगचुक को भी दिया गया है।
दरअसल यह वही फोर्ड फाउंडेशन है जो भारत में डीप स्टेट के नैरेटिव को खड़ा करने के लिए प्रतिवर्ष अलग-अलग संस्थाओं को वित्तपोषित करता है। वर्ष 2009 से लेकर अभी तक इस फाउंडेशन ने 162 ग्रांट जारी किए हैं, जिसमें कई संस्थाएं शामिल हैं। इस दौरान फोर्ड फाउंडेशन ने भारत की इन संस्थाओं को 300 करोड़ से अधिक के फंड मुहैया कराए हैं।
क्या आपको लगता है कि इन पैसों से गरीबों का भला किया गया होगा ? जी नहीं! इन्हीं पैसों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सोनम वांगचुक जैसे लोगों ने अपनी छवि निर्माण की है, और प्रदर्शन कर रहे हैं।
सोनम वांगचुक की संस्था के मुख्य वित्तपोषणकर्ता को देखे तो वो है फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स, जिसका स्टार्ट इंटरनेशनल द्वारा सहयोग किया जाता है। जब स्टार्ट इंटरनेशनल की छानबीन करते हैं तो पता चलता है कि इसे पिछले दरवाजे USAID, ऑक्सफेम और आईआईएचएस द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, जिसमें मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे जैसे लोग बोर्ड सदस्य हैं।
यदि आप सोनम वांगचुक से जुड़े सभी तारों को देखने और बारीकी से समझने की कोशिश करेंगे तो इसके तार डीप स्टेट्, सीआईए, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर फाउंडेशन और तो और कांग्रेस पार्टी से भी जुड़े मिलेंगे। यही कारण है कि सोनम वांगचुक बार-बार प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि मीडिया से लेकर आम जनता तक एक नया नैरेटिव खड़ा किया जा सके, और भारत के विकास की यात्रा को रोका जा सके।
हालांकि सोनम वांगचुक के तार जिन संस्थाओं से जुड़े हैं, उनका उद्देश्य केवल भारत के विकास को रोकना ही नहीं, बल्कि अपने मन मुताबिक सरकार को स्थापित करना भी है, तो यह भी समझा जा सकता है कि सोनम वांगचुक डीप स्टेट के 'सत्ता परिवर्त (रिज़िम चेंज)' का एक मोहरा हैं, जिसका इस्तेमाल अब भारत में किया जा रहा है।
रिज़ीम' का अर्थ होता है सत्ता और चेंज का अर्थ होता है परिवर्तन। दरअसल भारत में 'सत्ता परिवर्तन' कराने के लिए अमेरिकी सीआईए और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, दोनों लगे हुए हैं। इसमें पश्चिम का पूरा वैश्विक इकोसिस्टम और चीनी कम्युनिस्ट इकोसिस्टम भी शमिल है।
भारत के विरुद्ध सत्ता परिवर्तन हेतु डीप स्टेट के इस खेल में सबसे बड़ा रोल अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट अर्थात विदेश विभाग का है। यह वही विभाग है जिसने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन कराया है, और अपने एक कठपुतली मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश का प्रमुख बनाकर बैठाया है। मोहम्मद यूनुस का अमेरिका और डीप स्टेट से जुड़े लोगों से सीधा संबंध है। इसी तरह सोनम वांगचुक भी डीप स्टेट और अमेरिकी संस्थाओं से सीधे संबंध रखते हैं।
मीडिया में फैलाए प्रोपेगेंडा के अनुसार सोनम वांगचुक एक इंजीनियर, इनोवेटर और शिक्षाविद हैं, और साथ ही क्लाइमेट को लेकर एक जागरूक एक्टिविस्ट हैं। गौरतलब है कि सोनम वांगचुक एक ऐसे परिवार से आते हैं जो लद्दाख का समृद्ध एवं प्रभावशाली परिवार रहा है। सोनम के पिता सोनम वांग्याल कांग्रेस के बड़े नेता थे, साथ ही वो जम्मू कश्मीर सरकार में मंत्री भी थे।
सोनम वांगचुक ने अपनी संस्था के गठन के बाद से ही जितने प्रोजेक्ट लिए, उनमें से अधिकांश में विदेशी संस्थाओं की फंडिंग होती थी। सोनम वांगचुक के अधिकांश प्रोजेक्ट सीआईए और डीप स्टेट से जुड़ी संस्था फोर्ड फाउंडेशन, टाटा ट्रस्ट, डैन चर्च एड और करुणा ट्रस्ट द्वारा फंड किए जाते थे। सोनम वांगचुक की संस्था को होने वाले विदेशी फंडिंग को लेकर भी कुछ रिपोर्ट्स उनकी कथित पत्नी के संबंधों के पहलू को भी देखने को मजबूर करती है।
दरअसल सोनम वांगचुक की मुलाकात 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में एक अमेरिकी महिला रेबेका नॉर्मन से हुई थी, जिसके बाद दोनों ने वर्ष 1996 में कथित रूप से विवाह कर लिया (हालाँकि सोनम अब रेबेका को पत्नी के रूप में नहीं दिखा रहे हैं)।
रेबेका ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के 'स्कूल ऑफ इंटरनेशनल ट्रेनिंग' (SIT) से अपनी पढ़ाई पूरी की। यह एसआईटी महाविद्यालय अमेरिका में एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में स्थापित है, जिसका अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट से सीधा सम्बंध है। इस एसआईटी महाविद्यालय को फोर्ड फाउंडेशन, जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसायटी फाउंडेशन और बी एंड एमजी फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया जाता है। यह सभी संस्थाएं सीआईए और डीप स्टेट का ही हिस्सा हैं।
खैर, यहां बात सोनम वांगचुक की है। अब रेबेका से सम्पर्क में आने के बाद जैसे सोनम वांगचुक की जिंदगी ही बदल गई। सोनम वांगचुक को विदेशी संस्थाओं से व्यापक समर्थन मिलना शुरू हुआ। वर्ष 2002 में सोनम वांगचुक को अशोका फेलोशिप मिला, जो स्कॉल फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से वित्तपोषित है। इसके बाद शुरू होता है सोनम वांगचुक का भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी से संबंध।
वर्ष 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री चुने गए तब सोनम वांगचुक को दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से विशेष समर्थन हासिल हुआ। पहले तो सोनम वांगचुक को 'लद्दाख हिल काउंसिल विज़न डॉक्यूमेंट लद्दाख 2025' की ड्राफ्ट कमेटी में शामिल किया गया। और फिर इसके बाद शिक्षा एवं पर्यटन के बनने वाली नीति के लिए भी सोनम वांगचुक को कमेटी में रखा गया। सोनम वांगचुक द्वारा बनाए गए डॉक्यूमेंट का अंततः मनमोहन सिंह ने 2005 में विमोचन किया।
वर्ष 2005 में ही सोनम वांगचुक को मनमोहन सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय में प्राथमिक शिक्षा के नेशनल गवर्निंग काउंसिल में सदस्य के रूप में शामिल किया गया। फिर 2007 से 2010 तक सोनम वांगचुक ने डेनमार्क के एक एनजीओ के शिक्षा सलाहकार के रूप काम किया। यह एक ऐसा एनजीओ था जो शिक्षा मंत्रालय को शिक्षा में सुधार के लिए काम कर रहा था।
इस बीच चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के बीच एक गुप्त समझौता होता है और दूसरी ओर एक ऐसी फिल्म बनती है, जिसमें सोनम वांगचुक से प्रेरित एक किरदार शामिल किया जाता है। यह फ़िल्म होती है आमिर खान की। गौरतलब है कि यह वही आमिर खान हैं जिनकी फ़िल्म (सीक्रेट सुपरस्टार) भारत में तो 100 करोड़ भी नहीं कमा पाती, लेकिन चीन में अचानक 1000 करोड़ का बिजनेस कर लेती हैं।
खैर, हम फिर आते हैं सोनम वांगचुक पर। इसके बाद सोनम वांगचुक को वैश्विक परिदृश्य में लाने का काम शुरू होता है 2016 में। इसी वर्ष वांगचुक को इंटरनेशनल फ्रेड एम. पैकर्ड पुरस्कार दिया जाता है। यह पुरस्कार प्रकृति के संरक्षण के लिए स्विट्जरलैंड स्थित एक संस्था देती है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इस पुरस्कार को पूरी तरह से रॉकफेलर फाउंडेशन, प्यू, पैकवर्ड फाउंडेशन जैसी संस्थाएं वित्तपोषित करती हैं।
वर्ष 2017 में सोनम वांगचुक को टीएन खोशू मेमोरियल द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए पुरस्कृत किया जाता है। गौरतलब है कि यह पुरस्कार भी फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित होता है। इसके बाद वर्ष 2018 में सोनम वांगचुक को मिलता है रैमन मैग्सेसे पुरस्कार, और यहीं से उसे बनाया जाता है रिज़ीम चेंज का मोहरा।
रैमन मैग्सेसे पुरस्कार के माध्यम से सोनम वांगचुक की छवि निर्माण और मजबूत की जाती है। इसके माध्यम से भारत के युवाओं के बीच वांगचुक को एक महान शिक्षाविद, इनोवेटर और पर्यावरणविद के रूप में पेश किया जाता है। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह रैमन मैग्सेसे पुरस्कार भी फोर्ड, रॉकफेलर जैसे संस्थाओं से जुड़ा हुआ है, जिसके सीधे तार डीप स्टेट और सीआईए से हैं।
वहीं सोनम वांगचुक जिस एनजीओ 'लीड इंडिया' से जुड़े हैं, वो भी फोर्ड फाउंडेशन से वित्तपोषित है। इसके अलावा सोनम वांगचुक का सम्बंध इंटरनेशनल एसोशिएशन फ़ॉर लद्दाख स्टडीज़ से भी है, जिसे भी फोर्ड फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
दरअसल सोनम वांगचुक सीआईए, डीप स्टेट और भारत विरोधी शक्तियों का वह मोहरा है, जो समय-समय पर अपना रंग दिखाता रहा है।