शंघाई शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत और चीन के साथ उनकी कूटनीतिक बातचीत ने वैश्विक ध्यान खींचा है। इस दौरान अमेरिका के साथ व्यापार में तनाव भी बढ़ा है। हालांकि, जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी ने चीन के साथ संबंधों को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है, वहीं कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अपनी पार्टी से बिल्कुल अलग राय रखी है। थरूर ने भारत और चीन के बीच चल रही कूटनीतिक बातचीत का स्वागत किया है और इसे मौजूदा हालात में एक जरूरी कदम बताया है।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ मतभेदों को सुलझाना भारत के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे देश अमेरिका के बढ़ते दबाव का सामना कर पाएगा। थरूर ने रूस के साथ भारत के मजबूत संबंधों का भी समर्थन किया है और इसे देश के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए जरूरी बताया। थरूर की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब कांग्रेस लगातार सरकार की चीन नीति की आलोचना कर रही है। उनके इस बयान ने एक बार फिर कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान को उजागर कर दिया है।
इससे पहले कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात का मजाक उड़ाया था। रमेश ने आरोप लगाया था कि मोदी चीन के सामने "कायरों की तरह झुक गए" और पाकिस्तान चीन कॉरिडोर पर चुप रहे। उन्होंने इस कॉरिडोर को "गला" बताया था। कांग्रेस लगातार मोदी सरकार पर चीन से डरने और देश की सीमाओं की सुरक्षा न कर पाने का आरोप लगाती रही है।
वहीं, पीएम मोदी की शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठकों के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की व्यापारिक नीतियों पर हमला बोल दिया था। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भारत के साथ अमेरिका का व्यापार "एकतरफा आपदा" है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत अमेरिका से बहुत कम व्यापार करता है, जबकि अमेरिका भारत से बड़े पैमाने पर सामान खरीदता है। ट्रंप की यह टिप्पणी भारत अमेरिका संबंधों में आई गिरावट के बीच आई है।
थरूर की टिप्पणियां एक बार फिर यह साबित करती हैं कि विदेश नीति के मामलों में वे कांग्रेस की राय से अलग हो सकते हैं। चीन और रूस के साथ सरकार की कूटनीतिक पहल का समर्थन करके उन्होंने पार्टी के आक्रामक रवैये से खुद को अलग कर लिया है। उनका यह रुख राष्ट्रीय हितों को पार्टी की राजनीति से ऊपर रखने का संकेत देता है। यह दिखाता है कि कांग्रेस की विदेश नीति में एकरूपता की कमी है और पार्टी के भीतर ही अलग अलग मत हैं।
लेख
शोमेन चंद्र