मस्जिद में राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान

राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करने वाले तत्व कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं लोकतंत्र के लिए यह गंभीर खतरा है।

The Narrative World    06-Sep-2025
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कश्मीर की धरती पर शुक्रवार को घटी एक घटना ने फिर नये विवाद को जन्म दिया है। श्रीनगर स्थित हज़रतबल मस्जिद में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर मुस्लिमों की भीड़ ने राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ और जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. दारख्शान अंद्राबी का नाम अंकित एक पट्टिका तोड़ डाली।
 
हज़रतबल मस्जिद डल झील के उत्तरी तट पर स्थित है। हाल ही में केंद्र सरकार ने इसके संरक्षण और नवीनीकरण पर लगभग 50 करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन अभी हुई घटना यह बताती है कि यह केवल एक पत्थर तोड़ने की घटना नहीं थी, बल्कि भारत के संविधान, संप्रभुता और राष्ट्रीय अस्मिता पर सीधा प्रहार था।
 
3 सितंबर 2025 को नवीनीकरण के बाद मस्जिद का पुनः उद्घाटन किया गया। इसी अवसर पर एक स्मारक पट्टिका लगाई गई, जिसमें भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ और वक्फ बोर्ड अध्यक्ष डॉ. दारख्शान अंद्राबी का नाम अंकित था। लेकिन दो दिन बाद ही, 5 सितंबर को मुस्लिमों की भीड़ ने इस पट्टिका को तोड़फोड़ कर नष्ट कर दिया।
 
अशोक स्तंभ केवल एक शिलालेख या सजावट नहीं है। यह भारत के गौरव, मर्यादा और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतीक है। इसे तोड़ना दरअसल भारत की आत्मा को ठेस पहुँचाना है।
 
डॉ. दारख्शान अंद्राबी ने इस कृत्य को सीधे शब्दों में “आतंकवादी हमला” कहा है। उनका कहना था कि “यह केवल एक पत्थर का नुकसान नहीं है, यह संविधान का नुकसान है।” उनकी बात में सच्चाई है, क्योंकि राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान किसी एक दल, नेता या संस्था पर आक्रमण नहीं बल्कि पूरे भारत राष्ट्र पर आक्रमण है।
 
यह भी कटु सत्य है कि ऐसे कृत्यों का समर्थन करने वाले लोग, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से आते हों, लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर कर रहे हैं। यह केवल धार्मिक भावनाओं का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी सोच को हवा देने का प्रयास है।
 
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जहां पूरा देश इस कृत्य की निंदा कर रहा था, वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित कुछ विपक्षी दलों ने इसे “धार्मिक भावनाओं के खिलाफ कदम” बताकर केंद्र सरकार पर ही सवाल खड़े किए। पार्टी नेता तनवीर सादिक ने बयान दिया कि “इस्लाम में मूर्तिपूजा निषिद्ध है, इसलिए अशोक स्तंभ का वहां होना उचित नहीं।”
 
यह बयान न केवल गैर-जिम्मेदाराना था बल्कि खतरनाक भी। दरअसल, अशोक स्तंभ कोई धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता का प्रतिनिधि है। इसे “मूर्तिपूजा” से जोड़ना न केवल तथ्यों का घोर दुरुपयोग है बल्कि सीधे-सीधे जिहादियों की भाषा बोलना है। विपक्ष यदि ऐसे तत्वों का समर्थन करेगा तो यह कश्मीर में अलगाववाद को और बढ़ावा देगा और लोकतंत्र को कमजोर करेगा।
 
कश्मीर में राष्ट्रीय प्रतीकों का विरोध कोई नया नहीं है। 2019 में अनुच्छेद 370 की संशोधन के बाद से इस प्रवृत्ति में लगभग 30% वृद्धि दर्ज की गई है। 2023 में श्रीनगर के एक स्कूल में तिरंगा फहराने का विरोध किया गया था। अब हज़रतबल मस्जिद पर राष्ट्रीय प्रतीक का तोड़ा जाना उसी असहिष्णुता की अगली कड़ी है।
 
इतिहासकार प्रोफेसर अशोक परांजपे कहते हैं कि, “यह केवल एक धार्मिक मामला नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय प्रतीकों को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति का प्रतीक है। यह कश्मीर के भारतीय लोकतंत्र में पूर्ण रूप से एकीकरण के लिए एक गंभीर चुनौती है।”
 
इस घटना का आर्थिक पक्ष भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार ने हज़रतबल मस्जिद के नवीनीकरण पर लगभग 50 करोड़ रुपये खर्च किए। यह जनता के टैक्स का पैसा था, जिसका उद्देश्य था कि मजहबी धरोहर का संरक्षण और श्रद्धालुओं की सुविधा। लेकिन जिस प्रतीक को लगाने के लिए यह प्रयास किया गया, उसे कुछ जिहादी मानसिकता वाले लोगों ने नष्ट कर दिया। यह न केवल सरकारी संसाधनों का अपमान है, बल्कि उन करोड़ों भारतीयों की मेहनत का भी अपमान है जो टैक्स चुकाते हैं। राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ना सीधे-सीधे भारत की एकता पर हमला है।
 
कश्मीर में इस तरह की घटनाएँ केवल आस्था की आड़ में राष्ट्र विरोधी ताक़तों को बल देती हैं। यदि इन्हें सख्ती से न रोका गया तो यह राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा। वास्तव में, अब समय आ गया है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ मिलकर ऐसे तत्वों पर निर्णायक कार्रवाई करें। राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।साथ ही, समाज के भीतर संवाद और जागरूकता की प्रक्रिया को भी मजबूत करना होगा, ताकि लोग समझें कि अशोक स्तंभ या तिरंगा किसी धर्म विशेष का प्रतीक नहीं बल्कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, न्याय और एकता का प्रतिनिधित्व करता है।
हज़रतबल मस्जिद पर हुई घटना हमें यह चेतावनी देती है कि कश्मीर में अभी भी अलगाववादी सोच की जड़ें गहरी हैं। राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान केवल एक धार्मिक असहमति नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सुनियोजित हमला है।
 
जो लोग ऐसे कृत्यों को अंजाम देते हैं या उनका समर्थन करते हैं, वे न केवल संविधान का अनादर करते हैं बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं पर प्रहार करते हैं। यह आवश्यक है कि ऐसे अपराधियों के विरुद्ध कठोरतम कानूनी कार्रवाई हो और यह संदेश दिया जाए कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।