9 सितंबर को माओ त्से तुंग की मौत की बरसी मनाई जाती है। चीन उसे महान नेता कहता है, लेकिन उसकी नीतियों ने करोड़ों लोगों की जान ली। माओ की तानाशाही ने चीन को खून और भूख का देश बना दिया। वह सिर्फ सत्ता के लिए जीया और इंसानियत के खिलाफ फैसले लिए।
माओ ने 1949 में सत्ता संभाली। उसने कम्युनिस्ट पार्टी के नाम पर चीनियों से उनका जीवन छीन लिया। जमीन सुधार और क्रांति के नाम पर किसानों को जबरन खेत छोड़ने पड़े। जिसने विरोध किया, उसे मौत या जेल मिली। लाखों परिवार बर्बाद हो गए।
1958 में माओ ने "ग्रेट लीप फॉरवर्ड" शुरू किया। इसका मकसद चीन को औद्योगिक ताकत बनाना था, लेकिन यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी आपदा साबित हुई। करोड़ों किसानों को जबरन सामूहिक खेती में झोंक दिया गया।
लोहा गलाने के लिए लोगों से बर्तन और औजार तक ले लिए गए। खेतों में गलत नीतियों और झूठे आंकड़ों ने अन्न उत्पादन घटा दिया। नतीजा यह हुआ कि 1958 से 1962 के बीच चीन में भयानक अकाल पड़ा। अनुमान है कि 4 से 5 करोड़ लोग भूख से मर गए।
भूख से तड़पते लोग घास, पत्ते और कीड़े तक खाने लगे। कहीं-कहीं पर तो इंसान इंसान का मांस खाने लगे। यह सब माओ की मूर्खतापूर्ण नीतियों और हठ का नतीजा था। उसने अपनी गलती मानने के बजाय मौतों को छिपाया।
1966 में माओ ने "सांस्कृतिक क्रांति" का ऐलान किया। इसका मकसद था सत्ता पर पकड़ मजबूत करना। इसके लिए उसने युवाओं को "रेड गार्ड" बना दिया और उन्हें शिक्षकों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों पर हमला करने के लिए उकसाया।
माओ के आदेश पर लाखों लोग मारे गए। हजारों मंदिर, चर्च, किताबें और ऐतिहासिक धरोहरें नष्ट कर दी गईं। चीन की शिक्षा व्यवस्था तहस-नहस हो गई। परिवार बिखर गए और समाज डर से भर गया।
माओ ने धर्म को दुश्मन कहा। उसने कहा कि लोग सिर्फ पार्टी की पूजा करें। भगवान, परंपरा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश की गई। यह सब उसके कम्युनिस्ट एजेंडे का हिस्सा था।
कम्युनिज्म की विचारधारा ही खतरनाक है। इसमें व्यक्ति की आजादी की कोई जगह नहीं होती। सब कुछ राज्य के नियंत्रण में होता है। विरोध की आवाज कुचल दी जाती है और जनता गुलाम बन जाती है।
माओवाद इसी विचारधारा का चरम रूप है। भारत में भी माओवाद ने हजारों लोगों की जान ली है। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र में नक्सली माओ के नक्शे कदम पर हिंसा फैला रहे हैं। उनका एक ही मकसद है सरकार गिराना और खून बहाना।
माओवादी जनजातियों के नाम पर लड़ाई का दावा करते हैं, लेकिन सच्चाई है कि वे सिर्फ उन्हें ढाल बनाते हैं। गांव वालों को डराकर अपने लिए काम करवाते हैं और बच्चों तक को बंदूक पकड़ा देते हैं।
माओ की विरासत सिर्फ खून और धोखे की विरासत है। चीन के करोड़ों लोग उसकी गलतियों से मारे गए। फिर भी कम्युनिस्ट उसे मसीहा बताते हैं। लेकिन असलियत यह है कि वह इंसानियत का सबसे बड़ा अपराधी था।
भारत में भी कम्युनिस्ट आज माओवादियों का समर्थन करते हैं। यह हमारे लोकतंत्र और विकास के खिलाफ है। हमें माओ की नीतियों और माओवाद दोनों से सावधान रहना होगा।
माओ ने दिखाया कि जब सत्ता किसी तानाशाह के हाथ में होती है तो वह कितनी खतरनाक हो सकती है। उसकी नीतियों ने करोड़ों लोगों को मौत और अंधकार दिया। यही माओ का असली चेहरा है।
आज जरूरत है कि उसकी मौत की बरसी पर दुनिया को उसकी काली सच्चाई बताई जाए। माओ न तो नायक था और न ही समाज सुधारक। वह सिर्फ सत्ता का भूखा खूनखोर शासक था जिसने इंसानियत को रौंदा।
लेख
शोमेन चंद्र