लद्दाख से लेकर दिल्ली तक खुद को पर्यावरण प्रेमी और समाज सुधारक बताने वाले सोनम वांगचुक का सच अब सामने आ चुका है। फिल्मों में आमिर खान के किरदार "फुंसुख वांगडू" की प्रेरणा बनकर मशहूर हुए वांगचुक ने वर्षों तक अपनी छवि एक त्यागी और पर्यावरण योद्धा की बनाई। लेकिन दस्तावेजों, गांववालों की गवाही और उनके हालिया कदमों ने साफ कर दिया है कि यह छवि सिर्फ एक मुखौटा थी।
जमीन घोटाले से शुरू हुआ खेल
2018 में सोनम वांगचुक के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (HIAL) को फ्यांग गांव में करीब 1200 कनाल जमीन दी गई। शर्त थी कि वे दो साल में निर्माण पूरा करेंगे और 14 करोड़ रुपये प्रीमियम देंगे। न तो निर्माण हुआ और न ही भुगतान। उल्टा, बार-बार छूट की मांग की गई। जब तक मामला बढ़ा, बकाया 30 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
गांववालों ने खुद लेह स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद को पत्र लिखकर जमीन वापसी की मांग की। गांव के नंबदार कार्यालय ने भी विरोध जताते हुए कहा कि वांगचुक और जमीन मांग रहे हैं जबकि पहले दी गई जमीन का उपयोग तक नहीं हुआ। साफ है कि वांगचुक ने गांववालों के भरोसे से खिलवाड़ किया।
छात्रों को धोखा, डिग्रियां बेकार
HIAL को न विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और न ही UGC या AICTE से मान्यता। इसके बावजूद यहां डिग्री बांटी गई और दीक्षांत समारोह भी किए गए। यानी सैकड़ों छात्रों का करियर दांव पर लगा। लद्दाख स्वायत्त परिषद के चेयरमैन ताशी ग्याल्सन ने भी कहा कि यह साफ धोखाधड़ी है।
आइस स्तूप का ढोंग
जिस आइस स्तूप प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय समाधान बताया गया, उसी पर स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि इसमें प्लास्टिक पाइप, बोतलें और टेंट का भारी उपयोग कर पहाड़ों को गंदा किया गया। पानी के बहाव में बदलाव से इलाके की जल-व्यवस्था भी प्रभावित हुई। यानी पर्यावरण बचाने के नाम पर उसका ही नुकसान किया गया।
पाकिस्तान यात्रा और विदेशी हाथ
सबसे बड़ा खुलासा फरवरी 2025 में हुआ जब वांगचुक पाकिस्तान के "ब्रीद पाकिस्तान" कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए। ठीक दो दिन बाद भारत लौटकर पुणे में आंदोलन खड़ा कर दिया। सवाल यह है कि पाकिस्तान से लौटते ही भारत में विरोध प्रदर्शन क्यों शुरू हुए। क्या यह सब संयोग है या किसी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा।
लद्दाख जैसे संवेदनशील इलाके में, जो चीन और पाकिस्तान दोनों से सटा है, ऐसे कदम गंभीर सवाल खड़े करते हैं। पाकिस्तान समर्थित सोशल मीडिया अकाउंट्स लगातार वांगचुक को भारत सरकार द्वारा "पीड़ित" दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। यह समर्थन बताता है कि वांगचुक का खेल कितना गहरा है और कौन सी ताकतें उसके पीछे खड़ी हैं।
आंदोलन का ढाल बनाकर अपनी गड़बड़ियां छिपाना
हर बार जब उन पर जमीन घोटाले, बकाया भुगतान या मान्यता रहित डिग्रियों का आरोप लगा, वांगचुक ने उपवास और आंदोलन का सहारा लिया। खुद को शोषित कार्यकर्ता बताकर असली मुद्दों से ध्यान भटकाया। अब जब पाकिस्तान से लौटने के तुरंत बाद उन्होंने भारत में विरोध शुरू किया, तो साफ हो गया कि यह आंदोलन पर्यावरण बचाने का नहीं बल्कि भारत को भीतर से कमजोर करने की साजिश है।
असली चेहरा उजागर
सोनम वांगचुक अब पर्यावरण योद्धा नहीं बल्कि एक ऐसा चेहरा बन चुके हैं जिसने लद्दाख की जनता को धोखा दिया, छात्रों का भविष्य बिगाड़ा और विदेशी ताकतों के हाथों में खेलकर देश की स्थिरता पर चोट की।
भारत की जनता और खासकर लद्दाख के लोगों को अब समझना होगा कि यह व्यक्ति पर्यावरण या शिक्षा की आड़ में देश विरोधी एजेंडा चला रहा है। वांगचुक का असली चेहरा अब उजागर हो चुका है और देश को इस तरह की चालों से सावधान रहना होगा।
लेख
शोमेन चंद्र