झारखंड : कांग्रेस और सोरेन की गठबंधन सरकार में जनजातियों के समक्ष अस्तित्व बचाने की चुनौती

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट एवं जमीनी स्थितियों का आंकलन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि झारखंड में जिहादियों के द्वारा की जा रही यह सभी गतिविधियां एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। इसके अलावा झारखंड में जिन क्षेत्रों में ये अति कमजोर जनजातियां निवास करती हैं, वहां आवागमन की समस्याएं तो बनी हुई हैं, लेकिन उन स्थानों में पेयजल से लेकर मूलभूत सुविधाओं का संकट बना हुआ है।

The Narrative World    07-Feb-2023   
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हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने झारखंड का दौरा किया था
, इस दौरान उन्होंने राज्य की सोरेन और कांग्रेस की गठबंधन सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे।


अमित शाह ने कहा था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जनजातियों और गरीबों के हित की बात करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वो वोटबैंक की राजनीति करते हैं।


उन्होंने कहा कि झारखंड में घुसपैठियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जिसके कारण प्रदेश में जनजातियों की संख्या 35% से घटकर 24% पर आ गई है।


इसके अलावा गृहमंत्री ने कहा कि ये घुसपैठिए जनजातियों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके हेमंत सोरेन की बोलने की हिम्मत नहीं है।


अमित शाह के इन आरोपों पर यदि गंभीरता से नजर डालें तो यह दिखाई देता है कि झारखंड में स्थितियां वाकई में खतरनाक होती जा रही है।


हमने द नैरेटिव में पहले भी यह रिपोर्ट किया है कि कैसे झारखंड जिहादियों का अड्डा बनता जा रहा है, और जनजातीय बेटियों को निशाना बनाया जा रहा है।


मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा जनजातीय युवतियों एवं किशोरियों को प्रेमजाल में फंसाकर उनसे निकाह किया जा रहा है, साथ ही उन्हें मिलने वाले जनजातीय समाज के लाभ भी उठाए जा रहे हैं।


विभिन्न मीडिया रिपोर्ट एवं जमीनी स्थितियों का आंकलन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि झारखंड में जिहादियों के द्वारा की जा रही यह सभी गतिविधियां एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है।


इस्लामिक जिहादी पहले जनजातीय युवतियों एवं किशोरियों को प्रेम जाल में फंसाते हैं, उन्हें इस्लाम कुबूल करवाते हैं, और उनके अनुसूचित जनजाति की सूची में होने का फायदा उठाते हैं।


इन माध्यमों से जनजाति भूमि की खरीदी करना हो या आरक्षण का फायदा उठाकर जनजाति पंचायत में राजनीतिक शक्ति पर कब्जा जमाना हो, इन सभी गतिविधियों को झारखंड में अंजाम दिया जा रहा है।


झारखंड में हो रही इन घटनाओं का असर पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी दिखाई दे रहा है।


झारखंड से लगे छत्तीसगढ़ के जशपुर-बलरामपुर सीमावर्ती क्षेत्रों में तो पहली पत्नी होने के बाद भी जनजाति महिला से दूसरी शादी की जा रही है, ताकि भूमि हथियाई जा सके।


“झारखंड में केवल इस्लामिक जिहादी ही नहीं बल्कि ईसाई मिशनरियों से जुड़े लोगों के द्वारा भी इन गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, और ऐसी गतिविधियां राज्य के लगभग सभी जिलों में जारी है।”


इसके अलावा हाल ही आई विभिन्न रिपोर्ट्स में इस बात की जानकारी भी सामने आई है कि पूर्वी सिंहभूम जिले में रहने वाली सबर जनजाति परिवार की स्थिति काफी चिंतनीय है।


जिले के डुमरिया प्रखंड के दंपाबेड़ा गांव के पहाड़ी क्षेत्र में निवास करने वाली सबर जनजाति का एक परिवार दाने-दाने का मोहताज है।


स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उन्हें मिट्टी खाकर जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। इन परिस्थितियों के कारण परिवार में मौजूद पति-पत्नी दोनों बीमार हो चुके हैं, और खड़े होने में भी असमर्थ हो गए हैं।


झारखंड की सत्ता में काबिज हेमन्त सोरेन और कांग्रेस की गठबंधन सरकार में जनजातियों की स्थिति इतनी संकटग्रस्त हो चुकी है कि जनजाति परिवार जंगली कंद-मूल और मिट्टी खाने को विवश है।


परिवार के एक सदस्य की कमजोरी के कारण चमड़ी तक शरीर को छोड़ रही है, और अस्थि का ढांचा बस बचा हुआ दिखाई दे रहा है। परिवार ने बताया कि कई दिनों से उन्होंने सामान्य भोजन नहीं किया है।


जनजाति परिवारों की स्थिति का प्रदेश में ये एकमात्र मामला नहीं है, इससे पहले भी प्रदेश के कई हिस्सों से जनजातियों की बुरी स्थिति को लेकर जानकारी सामने आ चुकी है।


कुछ समय पूर्व बोकारो से एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें यह कहा गया था कि जिले के कई क्षेत्रों में जनजाति समाज गंदा पानी पीने को मजबूर है। बेरमो विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत जनजाति निवासी खेत का गंदा पानी पी रहे हैं।


एक तरफ जहां हेमंत सोरेन जनजातीय हितों की बात करते हैं, जनजाति अस्मिता की बात करते हैं, वहीं जब जनजाति समाज के ऊपर कोई संकट आए तब उन्हें कोई सुविधाएं नहीं दी जाती।


बेरमो क्षेत्र में बड़ी संख्या में जनजाति नागरिक निवास करते हैं, बावजूद इसके इन्हें कोई सुविधा नहीं दी जा रही।


स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि आसपास की महिलाओं को डेढ़ किलोमीटर तक जाकर खेतों से पानी लाना पड़ रहा है, जो पूरी तरह से गंदा है।


कांग्रेसी नेता कुमार जय मंगल सिंह इस क्षेत्र के विधायक हैं, प्रदेश में सरकार भी कांग्रेस और सोरेन की मिलीभगत वाली है, ऐसे में इस क्षेत्र में जनजातियों की बिगड़ती स्थिति का जिम्मेदार आखिर प्रदेश सरकार को नहीं तो किसे माना जाएगा ?


इन सब के अलावा झारखंड में जनजातीय हितों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की स्थिति भी खास नहीं है।


झारखंड में कुल 32 प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं, जिनमें से 8 जनजातियां ऐसी हैं जो अति कमजोर मानी जाती हैं।


जिस एक परिवार की स्थिति के बारे में बताया गया कि वह मिट्टी खाकर जीवन यापन कर रहा है, वह भी उसी अति कमजोर सबर जनजाति से आता है।


झारखंड में जिन क्षेत्रों में ये अति कमजोर जनजातियां निवास करती हैं, वहां आवागमन की समस्याएं तो बनी हुई हैं, लेकिन उन स्थानों में पेयजल से लेकर मूलभूत सुविधाओं का संकट बना हुआ है।


ना इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य की सुविधाएं हैं और ना ही शिक्षा की, ना ही रोजगार की व्यवस्था है और ना ही खेती के लिए उपयुक्त माहौल।


यह सब ऐसे कारण हैं जिसके कारण आम जनजाति समाज ना सिर्फ सुविधाओं से वंचित हो रहा है, बल्कि उनकी समस्याओं का फायदा उठाकर विधर्मी शक्तियां उन्हें अपना शिकार बना रही हैं।


दअरसल झारखंड में उत्तरपूर्व और छत्तीसगढ़ के मिशनरी मॉडल को उतारने का षड्यंत्र चल रहा है।


जिस तरफ उत्तर पूर्व और बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, शासन-प्रशासन नहीं है, ऐसे स्थानों में मिशनरियों ने तेजी से अपने पैर पसारे हैं और शासन की नाकामी का फायदा उठाकर यहां की जनजातियों का धर्म परिवर्तन कराया है।


“जिन क्षेत्रों में शिक्षा नहीं वहां मिशनरियों ने स्कूल खोल लिए, जहां स्वास्थ्य की सुविधा नहीं वहां अस्पताल खोल लिए, जहां सड़क नहीं वहां चर्च बना लिए और जहां शासन-प्रशासन नहीं वहां अपने मनमुताबिक सभी को ईसाई बना लिया। इन गतिविधियों से पहले से ही विलुप्ति की कगार पर खड़ी जनजातियों के समक्ष अस्तित्व का संकट आ पड़ा है।”


सोरेन और कांग्रेस की गठबंधन सरकार की जनजातियों के प्रति उदासीनता की हद तो यह है कि बीते 2 वित्तीय वर्षों में जनजाति संस्कृति से जुड़े एक भी भवन का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया गया है, और तो और वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान इस योजना के तहत किसी भी जिले में एक भी योजना स्वीकृत नहीं की गई।


सरकारी घोषणाओं और जमीनी सच्चाई की कहानी कुछ ऐसी है कि जनजातीय संस्कृति से संबंधित 784 योजनाओं की स्वीकृति बीते 3 वित्तीय वर्षों में की गई थी, जिसमें से केवल 41 का ही निर्माण कार्य पूरा किया गया है।


वहीं जनजातीय युवतियों एवं किशोरियों की स्थिति भी झारखंड में संकट में है।


बीते वर्ष दिसंबर माह में जिस तरह से रुबिका पहाड़िन की हत्या को एक जिहादी आतंकी ने अंजाम दिया था, उसके बाद इस बात की पुष्टि हो गई थी कि झारखंड में इस्लामिक समूह जनजातियों को निशाना बनाकर लव जिहाद का शिकार बना रहा है।


प्रदेश में हेमंत सोरेन और कांग्रेस की गठबंधन सरकार में जनजातियों की स्थिति गिरती जा रही है, वहीं उनकी संस्कृति, परंपरा, पहचान और अस्तित्व संकट में है।