नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार जब वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना माचाडो को दिया गया, तो कई लोगों ने इसे “लोकतंत्र की जीत” कहा। लेकिन कुछ ही घंटों में, वही पुरस्कार वैश्विक बहस का केंद्र बन गया कि क्या यह सचमुच शांति का सम्मान था, या CIA-प्रायोजित "रेजीम चेंज" (regime change) की नई वैधता का प्रतीक?
कौन हैं मारिया कोरीना माचाडो?
वेनेज़ुएला की यह 57 वर्षीय नेता लंबे समय से खुद को “लोकतंत्र की समर्थक” कहती हैं। लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा की तह में जाएँ तो तस्वीर कुछ और सामने आती है। मारिया ने 2002 में काराकास में "Súmate" नामक एक एनजीओ की स्थापना की। इस नाम का अर्थ है “शामिल हो”, पर उद्देश्य था तत्कालीन राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज़ के विरुद्ध रिफरेंडम और आंदोलन को संगठित करना।
वर्ष 2003 में, वाशिंगटन स्थित संस्था National Endowment for Democracy (NED) ने Súmate को आधिकारिक तौर पर फंडिंग दी। इसका प्रमाण भी मौजूद है। “Grant Agreement No. 2003-548.0” शीर्षक वाला यह दस्तावेज़ बताता है कि -
“Grantee: Súmate, A.C., Caracas, Venezuela — Grantor: National Endowment for Democracy, Washington, D.C.” यानी, Súmate को प्रत्यक्ष रूप से NED द्वारा वित्तपोषित किया गया था।
NED: लोकतंत्र या जासूसी की नई भाषा?
NED खुद को "लोकतंत्र बढ़ाने वाली गैर-सरकारी संस्था" कहती है। लेकिन अमेरिका और लैटिन अमेरिका के कई पत्रकार इसे CIA का नागरिक चेहरा मानते हैं। 1980 के दशक में जब CIA की विदेशों में प्रत्यक्ष भूमिका पर सवाल उठने लगे, तो अमेरिकी कांग्रेस ने NED को “soft intervention” के औज़ार के रूप में स्थापित किया।
इसका घोषित उद्देश्य “लोकतंत्र को बढ़ावा देना” था, पर व्यवहार में NED ने चिली, निकारागुआ, वेनेज़ुएला और यूक्रेन जैसे देशों में अमेरिकी हितों के अनुरूप राजनीतिक दलों, मीडिया और आंदोलनों को फंड किया।
द गार्जियन और अल जज़ीरा जैसी संस्थाओं ने पहले ही रिपोर्ट किया था कि NED का अधिकांश धन अमेरिकी विदेश विभाग के अनुमोदन से जारी होता है, और इसे “regime change operations” में कई बार इस्तेमाल किया गया है। Súmate को मिला यह अनुदान भी उसी श्रृंखला की कड़ी था।
अमेरिकी "फेलोशिप फैक्ट्री" और माचाडो की दीक्षा
2009 में माचाडो को येल यूनिवर्सिटी के "World Fellows Program" में चुना गया। दिलचस्प यह है कि यही प्रोग्राम रूस के विपक्षी नेता अलेक्सी नवालनी और म्यांमार, बेलारूस जैसे देशों के अन्य anti-regime figures को भी “प्रशिक्षण” दे चुका है।
इस प्रोग्राम का घोषित उद्देश्य “वैश्विक नेतृत्व” तैयार करना है, पर इसके कई पूर्व-छात्र बाद में अपने देशों में अमेरिकी समर्थित राजनीतिक आंदोलनों के चेहरों के रूप में सामने आए।
येल की वेबसाइट पर माचाडो के प्रोफाइल में लिखा है कि वह “सिविक एंगेजमेंट और लोकतांत्रिक पुनर्निर्माण” पर काम करती हैं, लेकिन इसी दौर में उन्होंने खुले तौर पर अमेरिकी नेताओं से वेनेज़ुएला सरकार के खिलाफ "कठोर कदम" उठाने की अपील की थी।
2005 में, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ उनकी मुलाकात की तस्वीरें काराकास में विवाद का विषय बनीं। वेनेज़ुएला संसद ने इस पर उनके खिलाफ कार्रवाई की, आरोप था कि उन्होंने “विदेशी शक्ति के समर्थन से राष्ट्रीय हितों के खिलाफ गतिविधि” की।
‘लोकतंत्र’ की आड़ में भू-राजनीतिक खेल
माचाडो के नोबेल पुरस्कार की घोषणा ऐसे समय हुई जब अमेरिका और यूरोपीय संघ फिर से वेनेज़ुएला में "राजनीतिक परिवर्तन" की बात कर रहे हैं। 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में जब माचादो को चुनाव आयोग ने "अनियमित वित्तीय लेनदेन" के आरोप में निर्वाचन से प्रतिबंधित किया, तो अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने तत्काल बयान जारी कर इसे “लोकतंत्र पर हमला” बताया। और अब, नोबेल कमेटी ने उन्हें “लोकतांत्रिक संघर्ष की प्रतीक” के रूप में सम्मानित किया है, यह सिलसिला संयोग नहीं लगता।
यही पैटर्न पहले बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस के साथ देखा गया था। 1990 के दशक में माइक्रोक्रेडिट मॉडल के कारण उन्हें भी नोबेल मिला, और दशकों बाद अमेरिका-यूरोप उसी पुरस्कार को आधार बनाकर ढाका की राजनीति में "लोकतंत्र बहाल करने" के नाम पर दखल देते रहे। अब वही “soft weapon of legitimacy” वेनेज़ुएला के संदर्भ में इस्तेमाल हो रहा है।
‘शांति पुरस्कार’ या ‘राजनीतिक वैधता’?
नोबेल शांति पुरस्कार, अपने इतिहास में, कई बार पश्चिमी भू-राजनीतिक हितों का प्रतीक रहा है। 1973 में हेनरी किसिंजर को वियतनाम युद्ध के बीच यह पुरस्कार दिया गया था, और 2009 में बराक ओबामा को उस समय दिया गया, जब उन्होंने अफगानिस्तान में सैनिक बढ़ा दिए थे।
2025 में यह पुरस्कार माचादो को देकर ओस्लो ने फिर एक सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या शांति का अर्थ अब “अमेरिका समर्थक” बन गया है?
फंडिंग, ऑपरेशन और मीडिया नेटवर्क
Súmate का नेटवर्क अमेरिकी NGOs, यूरोपीय फाउंडेशन और स्थानीय मीडिया चैनलों के साथ गहराई से जुड़ा है। अल जज़ीरा और वेनज़ुएलाऑनालिसिस.कॉम की रिपोर्टों के अनुसार, Súmate को न केवल NED से बल्कि USAID से भी सहायता मिली थी।
NED के 2003 के अनुदान दस्तावेज़ में उल्लेख है कि यह ग्रांट “इलेक्टोरल ट्रेनिंग और सिविक पार्टिसिपेशन” के लिए था, पर वेनेज़ुएला के अभियोजकों ने इसे “राजनीतिक अभियान फंडिंग” बताया।
अमेरिकी सरकार ने इन आरोपों को "राजनीतिक उत्पीड़न" कहा, लेकिन इसी “राजनीतिक उत्पीड़न” के नैरेटिव को बाद में CIA और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने माचाडो की “लोकतांत्रिक बलिदानी” छवि बनाने में इस्तेमाल किया।
उनके हर प्रतिबंध, गिरफ्तारी या भाषण को पश्चिमी मीडिया ने “लोकतंत्र के दमन” के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि वही मीडिया चिली, बोलिविया या ग्वाटेमाला में अमेरिकी हस्तक्षेपों पर मौन रहा।
अमेरिका की पुरानी रणनीति, नई पैकेजिंग
“लोकतंत्र” अमेरिका की सबसे प्रभावी ब्रांडिंग स्ट्रेटेजी बन चुकी है। इराक, लीबिया और अफगानिस्तान में यह प्रयोग हथियारों के साथ हुआ; अब यह एनजीओ, मीडिया, और नोबेल पुरस्कारों के रूप में सामने आता है।
मारिया माचाडो का नोबेल इसी कड़ी का हिस्सा है। एक तथाकथित “क्लीन फेस” जो अमेरिका के तेल हितों और वेनेज़ुएला के भू-राजनीतिक संसाधनों के लिए “लोकतंत्र का आवरण” बनता है। वेनेज़ुएला के पास दुनिया के सबसे बड़े प्रमाणित तेल भंडार हैं। वॉशिंगटन का उद्देश्य, आलोचकों के अनुसार, “लोकतंत्र” नहीं बल्कि “तेल की राजनीति” है।
नोबेल कमेटी की चुप्पी और अन्य प्रतिक्रिया
नोबेल कमेटी ने इस विवाद पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी। ओस्लो के प्रवक्ता ने बस इतना कहा है कि “यह पुरस्कार उन लोगों के लिए है जो अपने देश में शांति और लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं।” लेकिन न ही उन्होंने NED के फंडिंग लिंक पर टिप्पणी की, न ही यह स्पष्ट किया कि क्या कमेटी को माचाडो के अमेरिकी संबंधों की जानकारी थी।
वहीं दूसरी ओर वेनेज़ुएला ने बयान जारी किया कि “यह पुरस्कार एक राजनीतिक हस्तक्षेप है, शांति का नहीं।” लैटिन अमेरिकी देशों में भी इस पुरस्कार को लेकर असंतोष है। बोलीविया, निकारागुआ और क्यूबा ने इसे“एक नया औपनिवेशिक नैरेटिव” कहा है, जबकि कुछ यूरोपीय विश्लेषकों ने इसे “अमेरिकी सॉफ्ट पावर की पराकाष्ठा” बताया।
नोबेल की चमक में छिपा भू-राजनीतिक धुंआ
मारिया कोरीना माचाडो की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि यह उस प्रणाली की कहानी है जो लोकतंत्र और मानवाधिकार के नाम पर अपने भू-राजनीतिक हित साधती है। वेनेज़ुएला की जनता निश्चित रूप से लोकतंत्र चाहती है, पर सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र वॉशिंगटन के दूतावास से आयात किया जा सकता है?
नोबेल पुरस्कार का इतिहास बताता है कि जब भी यह पश्चिमी पूंजी और सत्ता के हितों से टकराता है, शांति पीछे रह जाती है और राजनीति पुरस्कार जीत लेती है।