
रात का घना सन्नाटा और नल्लामल्ला के जंगलों में कहीं दूर किसी जंगली जानवर की हल्की आवाज। इसी सन्नाटे के बीच अस्थायी कैंप लगाकर टॉर्च की हल्की रोशनी में कुछ परछाइयाँ जंगल के अंदर गहराई तक दिखाई देती हैं। यह कोई आम बैठक नहीं थी, यह उन माओवादियों की गुप्त मीटिंग थी, जो कभी दंडकारण्य की धरती को “रेड जोन” बना चुके थे, और आज खुद अपने अस्तित्व को बचाने की आखिरी जद्दोजहद में जुटे हैं।
दरअसल माओवादियों ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सीमा से सटे इस घने जंगल में दीपावली के समय एक महत्वपूर्ण बैठक की है। इस बैठक में माओवादी संगठन के शीर्ष बचे हुए चेहरे शामिल हुए।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सीमा पर स्थित नल्लामल्ला का घना जंगल, जो इस पूरे क्षेत्र का सबसे दुर्गम और कम आबाद इलाका माना जाता है, जो टाइगर रिज़र्व भी घोषित है।

सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में माओवादी सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख थिप्पिरी तिरुपति उर्फ देवजी, सीसी सदस्य हिड़मा, बटालियन कमांडर देवा, और दंडकारण्य में सक्रिय केसा व सोमारू जैसे नेता मौजूद थे। बैठक का उद्देश्य कमजोर पड़ चुके दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का पुनर्गठन और संगठन को दोबारा खड़ा करने की रणनीति बनाना बताया जा रहा है।
हालांकि सवाल यह है कि सरकार के व्यापक माओवादी उन्मूलन अभियान के बीच क्या नक्सली वाकई टिक पाएंगे?
पिछले सप्ताह में माओवादी संगठन के दो बड़े चेहरे रूपेश उर्फ सतीश और सोनू उर्फ भूपति ने क्रमशः बस्तर और गढ़चिरौली में आत्मसमर्पण किया है। इनके साथ करीब 260 कैडर ने भी सरेंडर किया। यह घटना नक्सली संगठन की रीढ़ टूटने का संकेत मानी जा रही है।

यही वजह है कि अब माओवादी बस्तर के जंगलों से दूर तेलंगाना के नल्लामल्ला क्षेत्र में बैठक कर रहे हैं। बैठक में लिए गए फैसले संकेत देते हैं कि हिड़मा, देवा और देवजी जैसे कमांडर अभी भी आत्मसमर्पण से कोसों दूर हैं। वहीं रूपेश के अनुसार, संगठन में कई कैडर सरेंडर करना चाहते हैं, लेकिन हिड़मा और देवजी के भय से ऐसा नहीं कर पा रहे।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले 22 महीनों में 2274 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जबकि 209 मुठभेड़ों में 448 माओवादी मारे गए हैं। इस दौरान बसवराजू, विकल्प, चलपति, कोसा और बालकृष्ण जैसे शीर्ष माओवादी भी मारे गए। इससे संगठन के भीतर डर और असुरक्षा की भावना गहराई है।

फिर भी नक्सलियों की सक्रियता का मुख्य कारण है उनका बटालियन नंबर 1, जो अब भी लगभग 300 से अधिक सशस्त्र माओवादियों के साथ सक्रिय है। पहले इस बटालियन की कमान हिड़मा के पास थी, जिसे अब देवा संभाल रहा है। इसके अलावा नक्सलियों की कंपनी नंबर 1, 2, 4 और 5 भी सक्रिय बताई जाती हैं।
सूत्रों के मुताबिक, नल्लामल्ला बैठक में तय हुआ कि देवजी को सेंट्रल कमेटी का प्रमुख, हिड़मा को मिलिट्री कमीशन का प्रमुख, केसा को बटालियन कमांडर, और दामोदर को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का इंचार्ज बनाया जा सकता है। साथ ही गणेश उइके को पोलित ब्यूरो सदस्य के रूप में उभारने की चर्चा भी हुई।

यह बैठक एक और संकेत देती है कि छत्तीसगढ़ अब माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना नहीं रहा। कभी जिन सुकमा-बीजापुर के जंगलों में उनकी बैठकों के किस्से आम थे, वे अब पूरी तरह सुरक्षा बलों के नियंत्रण में हैं।

माना जा रहा है कि बसवराजू की मौत, और रूपेश-सोनू के सरेंडर के बाद माओवादी संगठन पूरी तरह बैकफुट पर है। अंदरूनी मतभेद और नेतृत्व संकट के चलते इसमें गहरी दरारें पड़ चुकी हैं, जिन्हें भर पाना अब लगभग नामुमकिन लगता है।