नक्सलवाद: स्वस्फूर्त विद्रोह या रणनीतिक आतंकवाद (भाग - 2)

विकास विरोध, जन अदालतें और गुरिल्ला हमले, नक्सलियों की हर रणनीति माओ की सैन्य सोच की नकल है।

The Narrative World    05-Nov-2025
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इस लेख के पिछले भाग में हमने समझा कि माओवाद एक सोची-समझी रणनीति पर आधारित आतंकवाद है। यह शोषण के विरुद्ध या अधिकारों के लिए किया गया विद्रोह नहीं है। इस भाग में हम यह समझेंगे कि माओवादी आतंक ने देश में कैसे अपनी पकड़ जमाई और माओ की रणनीति क्या थी जिसने इन्हें भारत में फैलने में मदद की। इसके लिए हम माओ की रणनीतियों को समझेंगे और यह देखेंगे कि भारत के माओवादियों ने उन्हें किस तरह अपनाया।
 
आधार क्षेत्र (Base Area): रणनीतिक युद्ध का पहला चरण
 
स्वस्फूर्त विद्रोह में लोग जहां हैं, वहीं से विरोध करते हैं। परंतु माओवादी रणनीति में पहला कदम एक विशिष्ट प्रकार के आधार क्षेत्र की तलाश और स्थापना है। माओवादियों ने बस्तर को इसी कारण चुना। यह एक सुनियोजित रणनीतिक निर्णय था। माओ ने भी चीन में यही किया था।
 
माओवादी अपने दस्तावेज़ “Strategy & Tactics of the Indian Revolution” में लिखते हैं:
“Strategic Areas for establishing the Base Areas... Our country has many such areas that are strategically important for the people's war... These strategic areas are hilly regions with dense forest cover, have sufficient economic resources, a vast population, and a vast forest area spreading over thousands of square kilometres.”
 
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इस कथन का अर्थ केवल भौगोलिक वर्णन नहीं है, बल्कि एक सैन्य रणनीति है। वे भारत में दीर्घकालिक युद्ध के लिए ऐसे क्षेत्र चाहते हैं जहां पर्याप्त जनसंख्या हो, घने जंगल हों और आर्थिक संसाधन मौजूद हों ताकि युद्ध चलाया जा सके। यह किसी आंदोलन की नहीं, बल्कि युद्ध की तैयारी है।
 
आगे वे लिखते हैं:
“Dandakaranya, Jharkhand, Andhra, Bihar, Orissa Border, North Telangana, Koel-Kaimur - have a great strategic significance. We will be able to build these areas into a contiguous area of armed struggle.”
 
वे दंडकारण्य, झारखंड, आंध्र, बिहार, ओडिशा सीमा, उत्तर तेलंगाना और कोयल-कैमूर को रणनीतिक महत्व का बताते हैं और इन्हें सशस्त्र संघर्ष का जुड़ा हुआ क्षेत्र बनाने की योजना बताते हैं। छत्तीसगढ़ का बस्तर इसी दंडकारण्य क्षेत्र में आता है। पीपुल्स वॉर ग्रुप (PWG) ने अबूझमाड़ क्षेत्र को अपना आधार क्षेत्र चुना, जो माओ की रणनीति का सटीक प्रयोग था।
 
लोगों की लामबंदी (Mass Mobilization): भय का कारोबार
 
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आधार क्षेत्र स्थापित करने के बाद माओवादी जनता को अपने युद्ध में इस्तेमाल करने के लिए लामबंद करते हैं। अबूझमाड़ में उन्होंने पहले गीत, नाटक और सभाओं के माध्यम से लोगों को आकर्षित किया। इसके बाद ठेकेदारों और अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से मारकर भय का वातावरण बनाया।
 
माओवादी दस्तावेज़ में कहा गया है:
“From the very beginning we have to mobilize the masses on the slogans ‘Land to the Tiller’, ‘All power to the peasant committees!’, ‘Without power people have nothing!’, and ‘Without people's army people have nothing!’”
 
ये नारे सुनने में क्रांतिकारी लगते हैं, पर असल में यह सत्ता हथियाने का आह्वान है। चारु मजूमदार अपने आठ दस्तावेजों में लिखते हैं:
“Every Activist Group should discuss the class analysis among the peasantry, the propaganda of the programme of agrarian revolution.”
 
यह किसानों की समस्याओं को सुलझाने की नहीं, उन्हें युद्ध में झोंकने की योजना है। उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि उनका शत्रु कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरा राज्य तंत्र है।
माओवादी आगे लिखते हैं:
“Propagate the politics of seizure of power among the peasantry... and organize them into militant struggles.”
 
यह स्पष्ट रूप से उग्र संघर्ष की भाषा है। गांवों में “जन अदालतें” लगाकर लोगों को “पुलिस मुखबिर” बताकर मारना इसी रणनीति का हिस्सा है। इसका उद्देश्य भय फैलाना है ताकि कोई प्रशासन से संपर्क न करे।
 
विकास से अलगाव: व्यवस्थित रणनीति
 
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माओवादियों की एक क्रूर रणनीति यह है कि वे ग्रामीणों को विकास से दूर रखते हैं। वे स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र जलाते हैं ताकि लोग शिक्षित न हों और माओवादी प्रचार कर सकें। सड़कों और पुलों को उड़ाया जाता है ताकि पुलिस व प्रशासन वहां तक न पहुंच सके। इसका मकसद है ग्रामीणों को बाहरी दुनिया से अलग रखना और उन्हें अपने प्रभाव में रखना।
 
सेना और जनता का संबंध
 
माओ ने कहा था: “The people are the water and our army the fish.”
 
अर्थात, जैसे मछली पानी के बिना नहीं रह सकती, वैसे ही माओवादी सेना जनता के भय या समर्थन के बिना नहीं टिक सकती।
 
चारु मजूमदार लिखते हैं:
“The revolutionary war is the war of the masses... The people are the source of revolutionary power, the army their instrument, and the State the enemy.”
 
यानी जनता को साधन बनाकर राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ना ही उद्देश्य है।
 
शत्रु: लोकतांत्रिक भारतीय राज्य
 
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माओवादी दस्तावेज़ में लिखा है:
“Our enemy is big and powerful having centralized state machinery and a well-equipped modern army.”
 
वे भारतीय राज्य को अपना शत्रु मानते हैं। इसलिए नक्सलियों के हमले केवल सुरक्षाबलों पर नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र पर होते हैं।
 
क्षेत्र: हथियार, लक्ष्य नहीं
 
माओ की गुरिल्ला रणनीति में क्षेत्र को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। माओवादी दस्तावेज़ कहता है:
“Mobile warfare will not aim at retaining or capturing territories... it aims at wiping out enemy troops.”
 
इसका अर्थ है कि उनका लक्ष्य क्षेत्र पर कब्जा नहीं, बल्कि सैनिकों को मारना और भय फैलाना है। यही वजह है कि वे घात लगाकर हमला करते हैं और फिर जंगलों में गायब हो जाते हैं।
 
दीर्घकालिक युद्ध (Protracted War): समय शत्रु को कमजोर करता है
 
माओवादी युद्ध को लंबा खींचने की नीति अपनाते हैं। उनके अनुसार, जब राज्य शक्तिशाली हो, तब समय के साथ उसे थकाकर कमजोर करो। यही “प्रोट्रैक्टेड वॉर” की रणनीति है।
 
उनका दस्तावेज़ कहता है:
“The revolutionary war in India will be of protracted nature... passing through three stages: Strategic Defensive, Strategic Stalemate, and Strategic Offensive.”
 
यानी पहले छिपकर बचना, फिर ताकत बढ़ाकर हमला करना और अंत में राज्य को उखाड़ फेंकना।
 
विनाश की नीति (Annihilation)
 
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चारु मजूमदार लिखते हैं:
“We must finish the person whom we attack... if they annihilate, every one of the government's repressive machinery will be panic-stricken.”
 
अर्थात, वे अपने शत्रु को पूरी तरह मारते हैं ताकि भय का वातावरण बने। यह भय उनका सबसे बड़ा हथियार है। यही आतंकवाद की पहचान है।
 
गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla Warfare): छोटे हमले, बड़ा असर
 
माओवादी दस्तावेज़ कहता है:
“The guerrillas strike at the less mobile enemy's communication lines... harass him constantly.”
 
यानी सड़कें उड़ाना, पुलिस चौकियों पर हमला करना और आपूर्ति लाइन काटना उनकी रणनीति का हिस्सा है। यह किसी आंदोलन की नहीं, बल्कि सुनियोजित युद्ध की भाषा है।
 
 
निष्कर्ष
 
भारत में नक्सलवाद कोई स्वस्फूर्त विद्रोह नहीं है, बल्कि माओ की रणनीति का सटीक अनुप्रयोग है। यह विदेशी सोच पर आधारित दीर्घकालिक रणनीतिक आतंकवाद है जिसका लक्ष्य भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करना है।
 
जनजातीय समाज इस युद्ध में सबसे बड़ा पीड़ित है। माओवादी उन्हें औजार की तरह इस्तेमाल करते हैं। उनकी प्रत्येक रणनीति, आधार क्षेत्र की स्थापना, जन लामबंदी, विकास से अलगाव, गुरिल्ला युद्ध, विनाश की नीति और दीर्घकालिक युद्ध, माओ की चीनी रणनीति से ली गई है।
 
यह कोई जनआंदोलन नहीं, बल्कि विदेशी विचारधारा का आयात है जो भारत की एकता और लोकतंत्र के लिए खतरा है।
 
लेख
 
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आदर्श गुप्ता
युवा शोधार्थी