कांकेर जिले के आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़े तेवड़ा गांव में हुई घटना ने यह साफ कर दिया कि जनजाति समाज की आस्था, परंपरा और संस्कृति पर योजनाबद्ध तरीके से दबाव बनाया गया। शव दफनाने का विवाद अब केवल प्रशासनिक या कानून व्यवस्था का प्रश्न नहीं रहा। इस घटनाक्रम ने जनजातीय अस्मिता, ग्राम स्वशासन और पवित्र भूमि के अधिकारों पर सीधा आघात किया। गांव की सामूहिक सहमति को दरकिनार करने की कोशिशों ने माहौल को पहले ही गर्म कर दिया था।
ग्रामीणों के अनुसार 16 तारीख को सरपंच रजमन सलाम के पिता चमरा राम की मृत्यु हुई। उसी दिन से गांव में तनाव शुरू हो गया। सरपंच का परिवार कन्वर्जन कर चुका था। इसके बावजूद ईसाई मिशनरी समूहों ने भीम आर्मी के साथ मिलकर गांव की सीमा के भीतर शव दफना दिया। ग्रामीणों ने साफ कहा कि गांव में अंतिम संस्कार के लिए परंपरागत नियम तय हैं और हर धर्म के लिए अलग व्यवस्था मौजूद है। ग्राम सभा की अनुमति के बिना शव दफनाने की इस जल्दबाजी ने जनजाति समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।
ग्रामीणों ने पहले दिन से ही शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराया। उन्होंने परंपरानुसार अंतिम संस्कार की मांग रखी और प्रशासन से हस्तक्षेप की अपील की। आरोप है कि 16 और 17 तारीख को ईसाई समूहों और उनके साथ आए भीम आर्मी के लोगों ने ही पहले मारपीट शुरू की। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने संयम रखा और किसी भी उकसावे में नहीं आए। इसके बावजूद बाहरी लोगों ने गांव का माहौल बिगाड़ा और जनजातीय ग्रामीणों पर हमला किया।
स्थिति बिगड़ने पर प्रशासन ने भारी सुरक्षा के बीच शव को कब्र से बाहर निकाला और कांकेर जिले से बाहर भेजा। इसके बाद भी तनाव पूरी तरह नहीं थमा। 18 तारीख को जब लगातार हमलों और उकसावे के बाद जनजातीय और ग्रामीण समुदाय का सब्र जवाब दे गया, तब लोगों ने अपने बचाव में आक्रोश जताया। इसी दौरान सरपंच के घर में तोड़फोड़ हुई और गांव में बने अवैध चर्च में आग लग गई। ग्रामीणों का कहना है कि यह ढांचा पूजा स्थल नहीं था, बल्कि लंबे समय से कन्वर्जन का केंद्र बन चुका था। भीड़ दूसरे अवैध चर्च की ओर बढ़ी तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। इस दौरान कई ग्रामीण घायल हुए। प्रशासन ने धारा 144 लागू की, गांव को सील किया और बाहरी लोगों की आवाजाही पर रोक लगाई।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सरपंच रजमन सलाम ने जानबूझकर भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं को बुलाया और ईसाई मिशनरी समूहों के साथ मिलकर टकराव की जमीन तैयार की। गांव वालों का कहना है कि बाहरी संगठनों की इस दखलअंदाजी ने शांत गांव को हिंसा की ओर धकेला। जनजातीय समाज खुद को इस पूरे घटनाक्रम में पीड़ित मानता है और कहता है कि उसने केवल अपनी परंपराओं और पवित्र भूमि की रक्षा की।
यह स्थिति पहली बार सामने नहीं आई। पिछले कुछ वर्षों में जनजाति समाज बार बार महसूस कर रहा है कि उसकी आस्था, परंपरा और संस्कृति को कमजोर करने की कोशिशें तेज हुई हैं। नारायणपुर जिले के नयनपुर क्षेत्र का उदाहरण इस पीड़ा को और स्पष्ट करता है। 19 अगस्त 2024 को बेनूर थाना क्षेत्र के कोरेन्डा गांव में एक ईसाई महिला की मृत्यु के बाद जनजातीय ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि गांव की पवित्र भूमि पर दफन की अनुमति नहीं दी जाएगी। ग्रामीणों ने थाना प्रभारी को लिखित पत्र देकर बताया कि मृतिका का परिवार गांव की परंपराओं और देवी रीतियों को नहीं मानता, इसलिए अंतिम संस्कार गांव के बाहर होना चाहिए।
इस पत्र पर ग्रामीणों के हस्ताक्षर मौजूद हैं। इसके बावजूद ईसाई परिजन और मिशनरी समूह शव को अस्पताल के शवगृह में रखकर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे। इससे पहले जगदलपुर और भटपाल जैसे क्षेत्रों में निजी जमीन के नाम पर जनजातीय देवस्थलों के पास शव दफन करने के प्रयास सामने आए। जांच में कई बार यह सामने आया कि जिस भूमि को निजी बताया गया, वह शासकीय थी। ग्रामीणों का कहना है कि ऐसी जिद के पीछे जनजातीय और शासकीय भूमि पर कब्जा करने की मंशा काम करती है।
इन्हीं अनुभवों के आधार पर कांकेर के 14 गांवों ने पास्टर और पादरियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 के तहत यह निर्णय लिया और बोर्ड लगाकर स्पष्ट किया कि गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन वर्जित रहेंगे। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन फैसलों को सही ठहराया और माना कि जबरन या प्रलोभन के जरिए कन्वर्जन रोकने के लिए उठाए गए कदम स्थानीय संस्कृति की रक्षा करते हैं।
इन घटनाओं के बीच एक सकारात्मक संकेत भी उभर रहा है। जनजातीय समाज अपनी संस्कृति, परंपरा और देवी देवताओं के रीति रिवाजों को लेकर जागरूक हो रहा है। बस्तर के कोने कोने तक यह चेतना फैलना जरूरी है। जनजाति समाज आज यह सवाल उठा रहा है कि अगर उसकी आस्था और भूमि पर बार बार आघात होगा तो वह अपनी पहचान कैसे बचाए। यह आक्रोश बताता है कि जनजातीय समुदाय अब अपनी परंपराओं की रक्षा के लिए एकजुट हो रहा है और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर रहा है।
लेख
शोमेन चंद्र