40 लाख का इनामी नक्सली ढेर, फिर भी निकली शव यात्रा, नारे लगे, गांव उमड़ा… ये किस मानसिकता का जश्न है?

जिसने खून बहाया, उसके शव पर फूल बरसे… क्या संवेदना का ये रूप खतरनाक नहीं?

The Narrative World    21-Jun-2025
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छत्तीसगढ़–तेलंगाना बॉर्डर पर 18 जून को मारे गए खूंखार नक्सली गजराला रवि उर्फ उदय की तेलंगाना में शव यात्रा निकाली गई।
 
यह वही नक्सली था जिस पर 40 लाख का इनाम था और जो सेंट्रल कमेटी का सदस्य था।
 
वह देश के खिलाफ बंदूक उठाने वाला अपराधी था, फिर भी गांव में उसके लिए फूलों से सजा वाहन, बैंड बाजा और नारों के साथ शव यात्रा निकाली गई।
 
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यह न सिर्फ अफसोसजनक है बल्कि खतरनाक सोच को बढ़ावा देने वाला कृत्य भी है।
 
गजराला रवि का नाम आतंक और हिंसा से जुड़ा हुआ था। पुलिस रिकॉर्ड बताता है कि वह आंध्र–ओडिशा बॉर्डर स्पेशल जोनल कमेटी का सदस्य था और कई सालों से माओवादी हिंसा में शामिल था।
 
वह आम लोगों, जवानों और विकास के दुश्मन के रूप में कुख्यात था।
 
फिर भी उसके लिए गांव वालों का इकट्ठा होना और बैंड बजाकर अंतिम विदाई देना उन हजारों पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है जो नक्सलवाद की वजह से अपनों को खो चुके हैं।
 
इस तरह की शव यात्राएं नक्सल विचारधारा को मजबूत करने की चाल होती हैं। 
 
 
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यह मानसिक रूप से कमजोर और गुमराह युवाओं को फिर से हथियार उठाने के लिए उकसाने की कोशिश है।
 
जो लोग ऐसे अपराधियों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, वे समाज और संविधान दोनों के खिलाफ खड़े हैं।
 
गौर करने वाली बात यह है कि रवि का नेटवर्क बस्तर तक फैल रहा था और वह छत्तीसगढ़ में संगठन को मजबूत करने की फिराक में था।
 
सुरक्षा बलों की तत्परता से वह मारा गया। तेलंगाना पुलिस ने शव उसके परिवार को सौंप दिया, लेकिन जो कुछ बाद में हुआ, वह शर्मनाक था।
 
आईजी स्तर के अफसर भी कह चुके हैं कि माओवाद का अंत तय है।
 
 
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बसवा राजू, सुधाकर, चलपति जैसे बड़े चेहरे पहले ही मारे जा चुके हैं। गजराला रवि की मौत भी उसी कड़ी का हिस्सा है।
 
अब वक्त है कि जनता भी तय करे कि वह देश के साथ है या नक्सलियों के पक्ष में खड़ी भीड़ का हिस्सा बनना चाहती है।
देश को तोड़ने वालों की पूजा करना बंद कीजिए, क्योंकि वे किसी के नहीं होते! "न जनता के, न इंसानियत के।"
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़