आमाबेड़ा में घर वापसी: पेन-पुरखा की परंपरा की ओर लौटता कनवर्टेड समूह

24 Dec 2025 12:04:29
Representative Image
 
कांकेर जिले के आमाबेड़ा में हालिया हिंसा के बाद ग्राम चिखली में तीन परिवारों के 19 ग्रामीणों ने ईसाई धर्म छोड़ा और विधिवत अपने मूल जनजाति धर्म में लौटे।
 
आमाबेड़ा की घटना ने जनजाति समाज के भीतर गहन आत्ममंथन को जन्म दिया है। बाहरी हस्तक्षेप, कन्वर्जन की राजनीति और परंपराओं पर आघात ने कई गांवों को अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया। इसी क्रम में ग्राम चिखली के ग्रामीणों ने सामूहिक निर्णय लेकर अपने पथ-पुरखों, प्रकृति-पूजा और पारंपरिक देवी-देवताओं में आस्था पुनर्स्थापित की। ग्रामीणों ने पारंपरिक विधि-विधान से घर वापसी की और सामाजिक एकता का संदेश दिया।
 
घर वापसी करने वाले परिवारों ने स्पष्ट कहा कि जनजाति समाज की पहचान प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व, सामूहिक जीवन मूल्यों और सदियों पुरानी परंपराओं से बनती है। उन्होंने बताया कि बाहरी प्रभावों ने कुछ समय के लिए भ्रम पैदा किया, लेकिन आमाबेड़ा की घटना ने सच्चाई सामने रख दी। ग्रामीणों ने कहा कि परंपराओं से समझौता समाज को कमजोर करता है और मूल धर्म ही उन्हें आत्मसम्मान देता है।
 
 
सुकलू राम ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कुछ व्यक्तिगत समस्याओं और विवशताओं के कारण वे ईसाई धर्म से जुड़े थे। आमाबेड़ा की घटना ने उन्हें अपनी असली पहचान पर विचार करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने परिवार सहित स्थायी रूप से ईसाई धर्म छोड़ने और जनजातीय रीति-रिवाजों के मार्ग पर लौटने का संकल्प लिया। अन्य ग्रामीणों ने भी इसी भावना को दोहराया और युवाओं से अपनी संस्कृति को बचाने की अपील की।
 
Representative Image
 
आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़े तेवड़ा गांव में शव दफन को लेकर शुरू हुआ विवाद जल्द ही हिंसा में बदल गया। सरपंच ने गांव की परंपरा और सामूहिक सहमति को दरकिनार कर ईसाई रीति से अंतिम संस्कार कराया। विरोध के बावजूद उसने बाहर से भीम आर्मी और कन्वर्टेड समूहों को बुलाकर माहौल भड़काया। 17 और 18 दिसंबर को हमलों में ग्रामीणों को चोटें आईं और गांव में तनाव बढ़ा। जनजातीय समाज ने एकजुट होकर अपनी पवित्र भूमि और परंपराओं की रक्षा की।
 
चिखली के ग्रामीणों ने आमाबेड़ा की घटनाओं से सबक लेते हुए कन्वर्जन के दुष्परिणामों को सार्वजनिक रूप से खारिज किया। उन्होंने कहा कि अवैध ढांचे और जबरन कन्वर्जन समाज को बांटते हैं। गांव में हुई घर वापसी को जनजाति समाज सांस्कृतिक चेतना की जीत मान रहा है। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की कि परंपराओं की रक्षा हो और बाहरी हस्तक्षेप पर सख्त कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
Powered By Sangraha 9.0