छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के घने जंगल एक बार फिर गोलियों की आवाज से गूंज उठे।
बुधवार सुबह सुरक्षाबलों ने बड़ी कार्रवाई करते हुए 27 नक्सलियों को मौत के घाट उतार दिया।
मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में नक्सल संगठन का बड़ा चेहरा और 1.5 करोड़ का इनामी पोलित ब्यूरो सदस्य बसवा राजू भी शामिल है।
अबूझमाड़ में इस मुठभेड़ के बाद यह साफ हो गया है कि नक्सलवाद की जड़ें अब कमजोर हो रही हैं और इसका अंत बहुत पास है।
पुलिस को पुख्ता जानकारी मिली थी कि नारायणपुर, दंतेवाड़ा और बीजापुर के सीमावर्ती इलाके बोटेर में बसवा राजू अपने दल के साथ मौजूद है।
इसके बाद विशेष बलों को रवाना किया गया। जैसे ही सुरक्षाबल अबूझमाड़ के बोटेर पहुंचे, नक्सलियों ने घात लगाकर फायरिंग शुरू कर दी।
जवानों ने भी मोर्चा संभालते हुए जवाबी कार्रवाई की। घंटों चली मुठभेड़ में अब तक 20 नक्सलियों के शव बरामद कर लिए गए हैं।
इलाके में तलाशी अभियान अभी भी जारी है। इस दौरान एक जवान घायल हुआ है, जिसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है।
बसवा राजू कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का महासचिव था।
बसवा राजू को ढूंढकर मार गिराना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी कामयाबी मानी जा रही है, क्योंकि उसका ठिकाना दशकों से रहस्य बना हुआ था।
इससे पहले भी सुरक्षाबलों ने सात दिन पहले कर्रेगुट्टा ऑपरेशन के तहत छत्तीसगढ़-तेलंगाना बॉर्डर पर 31 नक्सलियों को मार गिराया था।
यह ऑपरेशन 24 दिनों तक चला था। उस मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों में 16 महिलाएं और 15 पुरुष शामिल थे।
अब अबूझमाड़ में हुई इस कार्रवाई से यह साफ है कि नक्सलियों के आखिरी गढ़ों पर भी सुरक्षाबलों की पकड़ मजबूत हो गई है।
प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों ने बेहद साहसिक कार्रवाई की है।
उन्होंने जवानों की बहादुरी की सराहना करते हुए कहा कि नक्सलवाद अब अंतिम सांसें गिन रहा है।
सरकार और सुरक्षाबल मिलकर जंगलों में छिपे आखिरी नक्सलियों तक पहुंचने और उन्हें खत्म करने का काम कर रहे हैं।
अबूझमाड़, कर्रेगुट्टा और इससे पहले सिलगेर, बासागुड़ा, दक्षिण बस्तर जैसे क्षेत्रों में हुई लगातार कार्रवाइयों से यह स्पष्ट हो गया है कि नक्सलवाद अब केवल नाम मात्र का रह गया है।
जिस संगठन ने कभी पूरे इलाके में दहशत फैला रखी थी, वह अब अपने ही लोगों को खोकर बिखरने की कगार पर है।
अबूझमाड़ को नक्सलियों का सबसे सुरक्षित गढ़ माना जाता था। यहां पर पुलिस और सुरक्षाबलों का पहुंचना कभी असंभव जैसा माना जाता था।
लेकिन अब समय बदल चुका है। जवानों ने न केवल वहां तक पहुंच बनाई है, बल्कि नक्सलियों को उन्हीं के गढ़ में खत्म कर रहे हैं।
इस मुठभेड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सरकार और सुरक्षाबलों की रणनीति सही दिशा में है।
अबूझमाड़ की लड़ाई नक्सलवाद के पतन की ओर बड़ा कदम है।
नक्सली अब बचे हुए आखिरी इलाकों में भी सुरक्षित नहीं हैं।
देश नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्ति की ओर तेजी से बढ़ रहा है।