नक्सल आतंकवाद और बसव राजू का खात्मा: एक निर्णायक झटका

क्या बसव राजू की मौत से नक्सल आतंकवाद खत्म हो जाएगा या लड़ाई अब नए मोड़ पर पहुंचेगी?

The Narrative World    22-May-2025   
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भारत के मध्य और पूर्वी हिस्सों में लंबे समय से नक्सल आतंकवाद एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
 
यह न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास को भी बाधित करने वाला एक काला अध्याय है।
 
नक्सलवाद, जिसे कुछ लोग माओवादी आंदोलन के रूप में रोमांटिक ढंग से चित्रित करने की कोशिश करते हैं, वास्तव में एक क्रूर आतंकवादी गतिविधि है, जो निर्दोष नागरिकों और सुरक्षा बलों के जवानों की हत्या, बमबारी और हिंसा के जरिए अपनी विचारधारा को थोपने का प्रयास करती है।
 
इस आतंकवादी संगठन के प्रमुख नेता बसव राजू उर्फ नंबाला केशव राव की हाल ही में छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगल में हुई मुठभेड़ में मृत्यु ने नक्सल आतंकवाद को एक अभूतपूर्व झटका दिया है।
 
यह घटना न केवल भारतीय सुरक्षा बलों की ताकत और समर्पण को दर्शाती है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवाद के खिलाफ दृढ़ नीतियों की सफलता को भी रेखांकित करती है।
 
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बसव राजू, जिसे नक्सल आतंकवाद का एक प्रमुख चेहरा माना जाता था, सीपीआई (माओवादी) का महासचिव था।
 
1955 में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में जन्मा राजू एक सामान्य पृष्ठभूमि से आया था, लेकिन उसने 1970 के दशक में नक्सल आंदोलन में शामिल होकर हिंसा का रास्ता चुना।
 
वह अपनी तकनीकी विशेषज्ञता, गुरिल्ला युद्ध की रणनीति और विस्फोटक बनाने की क्षमता के लिए जाना जाता था।
Representative Image1980 में संगठन में शामिल होने के बाद, वह धीरे-धीरे इसके शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचा और 2018 में गणपति के बाद सीपीआई (माओवादी) का महासचिव बना।
 
राजू ने कई घातक हमलों की योजना बनाई, जिनमें सुरक्षा बलों और नागरिकों की जानें गईं।
 
वह छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में नक्सल आतंकवाद की रीढ़ था।
 
उसका प्रभाव इतना गहरा था कि वह संगठन के लिए वैचारिक और सामरिक दिशा-निर्देशक के रूप में काम करता था।
 
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राजू की मृत्यु से नक्सल आतंकवादियों में नेतृत्व का संकट पैदा होने की संभावना है, क्योंकि उसके जैसी रणनीतिक और तकनीकी समझ रखने वाले नेता संगठन में कम ही हैं।
 
नक्सल आतंकवाद की क्रूरता को समझने के लिए बसव राजू के नेतृत्व में हुए कुछ हमलों पर नजर डालना जरूरी है।
 
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2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए हमले में 76 सीआरपीएफ जवान बलिदान हुए थे, जिसकी योजना में राजू की अहम भूमिका थी।
 
इसी तरह, 2013 में सुकमा के झीरम घाटी हमले में 27 लोग, जिनमें कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और सुरक्षा कर्मी शामिल थे, मारे गए।
 
2021 में सुकमा-बीजापुर सीमा पर हुए हमले में 22 जवान बलिदान हुए, जिसके पीछे भी राजू की रणनीति थी।
 
ये हमले नक्सलवाद की आतंकवादी प्रकृति को स्पष्ट करते हैं, जो न केवल सुरक्षा बलों को निशाना बनाता है, बल्कि नागरिकों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी कमजोर करने का प्रयास करता है।
नक्सलवादी अपनी तथाकथित "क्रांतिकारी" विचारधारा के नाम पर स्कूलों, अस्पतालों और बुनियादी ढांचे को नष्ट करते हैं, जिससे जनजाति और ग्रामीण समुदायों का विकास अवरुद्ध होता है।
 
यह विचारधारा न तो सामाजिक न्याय की बात करती है और न ही विकास की, बल्कि यह केवल हिंसा और अराजकता का पर्याय है।
 
21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगल में हुई मुठभेड़ में भारतीय सुरक्षा बलों ने न केवल बसव राजू, बल्कि 26 अन्य नक्सल आतंकवादियों को भी मार गिराया।
 
यह ऑपरेशन, जो 50 घंटे तक चला, भारतीय सुरक्षा बलों की अदम्य साहस, रणनीतिक कौशल और समर्पण का प्रतीक है।
 
सीआरपीएफ, डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) और अन्य बलों ने इस जटिल और जोखिम भरे अभियान को अंजाम दिया, जिसमें नक्सलियों के एक बड़े समूह को घेरकर उन्हें निर्णायक रूप से परास्त किया गया।
 
यह तीन दशकों में पहली बार है कि नक्सल आतंकवाद के शीर्ष नेता को इस तरह खत्म किया गया है।
 
सुरक्षा बलों की इस उपलब्धि की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। यह उनकी अथक मेहनत, खुफिया जानकारी के बेहतर उपयोग और जमीनी स्तर पर समन्वय का परिणाम है।
 
इस ऑपरेशन ने न केवल नक्सलियों की कमर तोड़ी, बल्कि उनके मनोबल को भी चकनाचूर कर दिया।
 
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छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवाद के खिलाफ नीतियां भी इस सफलता में महत्वपूर्ण रही हैं।
 
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य सरकार ने नक्सल आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है।
 
यह रणनीति न केवल सैन्य कार्रवाइयों पर केंद्रित है, बल्कि विकास और सामाजिक समावेशन को भी प्राथमिकता देती है।
 
ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, स्कूल, अस्पताल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का विस्तार करके सरकार ने नक्सलियों के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया है।
 
साथ ही, स्थानीय जनजाति युवाओं को रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करके उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की पहल की गई है।
 
छत्तीसगढ़ पुलिस और डीआरजी की भूमिका भी सराहनीय रही है, जिन्होंने स्थानीय स्तर पर खुफिया जानकारी जुटाकर और जमीनी कार्रवाई करके नक्सलियों के खिलाफ प्रभावी कदम उठाए हैं।
 
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केंद्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में चल रहे "नक्सल मुक्त भारत" अभियान ने भी इस दिशा में नई गति प्रदान की है।
 
नक्सलवाद को किसी भी रूप में माओवादी आंदोलन या सामाजिक क्रांति के रूप में देखना एक खतरनाक भूल होगी।
 
यह एक आतंकवादी गतिविधि है, जो हिंसा, भय और अस्थिरता फैलाने का काम करती है।
 
बसव राजू जैसे नेताओं ने न केवल सुरक्षा बलों के जवानों की जान ली, बल्कि जनजाति समुदायों को विकास से वंचित रखा।
 
उनकी मृत्यु नक्सल आतंकवाद के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।
 
नक्सलियों का प्रभाव भले ही कम हुआ हो, लेकिन उनकी विचारधारा और बिखरे हुए कैडर अभी भी कुछ क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
इसे पूरी तरह समाप्त करने के लिए सुरक्षा बलों को अपनी रणनीति को और तेज करना होगा, साथ ही सरकार को सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे।
 
बसव राजू का खात्मा भारतीय सुरक्षा बलों और छत्तीसगढ़ सरकार की एक ऐतिहासिक जीत है। यह उन बलिदान जवानों को भी श्रद्धांजलि है, जिन्होंने नक्सल आतंकवाद के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
 
यह जीत न केवल नक्सलियों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि देश के हर नागरिक के लिए यह संदेश है कि भारत आतंकवाद के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं करेगा।
 
सुरक्षा बलों और छत्तीसगढ़ सरकार की इस अभूतपूर्व सफलता को सलाम करते हुए, हमें यह संकल्प लेना होगा कि नक्सल आतंकवाद को पूरी तरह समाप्त करने तक यह लड़ाई जारी रहेगी।