भारत विरोधी नैरेटिव : पाकिस्तान-चीन का ‘हाफ फ्रंट’ अब इंडियन न्यूज़ रूम में

क्या भारतीय मीडिया पाकिस्तान-चीन के नैरेटिव को बढ़ावा देकर भारत की वैचारिक संप्रभुता को कमजोर कर रहा है?

The Narrative World    06-May-2025   
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हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद, पूरे देश में इन्फ़र्मेशन वॉरफ़ेयर तेज़ हो चुका है, जिसमें भरतिया मीडिया का एक हिस्सा पाकिस्तान और चीन का नैरेटिव परोसने में जुटा है। Deccan Herald, Times of India (TOI), Sportskeeda और कई अन्य डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स ने अपनी रिपोर्टिंग में कश्मीर को "Indian Occupied Kashmir" या "India-administered Kashmir" कहकर संबोधित किया है। यह केवल शब्दों की चूक नहीं थी; वास्तव में यह वैचारिक आक्रमण था। यह एक ऐसी विचारधारा का प्रचार था, जिसे लंबे समय से पाकिस्तान और चीन अपने "0.5 फ्रंट" रणनीति के तहत आगे बढ़ा रहे हैं — बिना गोली चलाए, बिना टैंक भेजे, भारत की नींव को कमजोर करना।
 
इसे समझने के लिए हमें 'Broken Windows Theory' को समझना होगा, जिसे वर्ष 1982 में जेम्स क्यू. विल्सन और जॉर्ज केलिंग द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी इमारत की एक खिड़की टूटी हो और उसे तुरंत ठीक न किया जाए, तो वहां और खिड़कियाँ टूटने लगती हैं। यही सिद्धांत मीडिया और वैचारिक युद्ध पर भी लागू होता है।
 
जब TOI जैसा प्रतिष्ठित अख़बार "Indian administered Kashmir" लिखता है, वह एक वैचारिक खिड़की को तोड़ता है। जब Deccan Herald इसे दोहराता है, दूसरी खिड़की टूटती है। और जब Sportskeeda जैसे प्लेटफ़ॉर्म इसे सामान्य बना देते हैं, तो पूरी इमारत की खिड़कियाँ ढहने की स्थिति में आ जाती है। यह भारत की वैचारिक संप्रभुता पर सुनियोजित हमला है।
 
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कोई भी अनुभवी संपादक या संवाददाता "Indian administered Kashmir" जैसे शब्दों का प्रयोग 'अनजाने में' नहीं करता। यह शब्द अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पाकिस्तान का आधिकारिक प्रोपेगैंडा टूल है, जो दशकों से संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों पर फैलाया जा रहा है। पाकिस्तान इसे 'IOK' कहता है — Indian Occupied Kashmir — और उसी भाषा को अब भारतीय मीडिया द्वारा दोहराया जाना एक गहरी साजिश का हिस्सा है।
 
पाकिस्तान और चीन का 0.5 फ्रंट युद्ध का नया रूप है — न साइबर अटैक, न मिसाइल — बस विचारों और शब्दों से एक राष्ट्र की छवि को खंडित करना। यह वही रणनीति है जिससे चीन ताइवान को ‘breakaway province’ और तिब्बत को ‘internal matter’ साबित करता है।
 
पहलगाम आतंकी हमले ने निर्दोष हिंदू यात्रियों की जान ले ली। यह हमला केवल आतंकवाद नहीं था, यह एक धार्मिक नरसंहार था, जिसे इस्लामी जिहादियों ने अंजाम दिया। लेकिन जब इस पर रिपोर्टिंग की गई, तो कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे 'violence in Indian administered Kashmir' जैसे शब्दों में प्रस्तुत किया। मानो दोष भारत का हो। मानो कश्मीर पर भारत का कब्ज़ा हो।
 
 
यहां पर केवल पीड़ितों का अपमान नहीं हुआ — यह भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला था। यह संदेश था कि मीडिया का एक हिस्सा अब दुश्मन के नैरेटिव को बिना किसी शर्म या भय के दोहरा रहा है।
 
यह कोई फ्री-स्पीच का मामला नहीं है। यह संविधान, राष्ट्रीय अखंडता और भारत की विदेश नीति के विरुद्ध किया गया कृत्य है। अमेरिका में कोई मीडिया संस्थान यदि अपने ही देश को “US Occupied Texas” कहे, तो वह अगले दिन बंद हो जाएगा।
 
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चीन में यदि कोई आउटलेट ताइवान को "Independent Taiwan" कहे, तो संपादक जेल में होगा। लेकिन भारत में कश्मीर के मामले में यह नरमी क्यों?
 
यह समय है जब भारत सरकार को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि राष्ट्रीय अखंडता पर समझौता करने वाली पत्रकारिता देशद्रोह के अंतर्गत आएगी। Information and Broadcasting Ministry को तत्काल इन मीडिया हाउसों को कारण बताओ नोटिस भेजना चाहिए। Press Council of India को इन मामलों की निष्पक्ष जांच कर संपादकों पर जुर्माना, लाइसेंस रद्दीकरण, या आपराधिक मामला दर्ज करने की सिफारिश करनी चाहिए।
 
साथ ही, संसद को एक स्पष्ट क़ानून लाना चाहिए जिसमें मीडिया आउटलेट्स पर कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों के संदर्भ में गलत शब्दों के प्रयोग को “National Integrity Offense” माना जाए।
 
वास्तव में देखें तो पाकिस्तान की पारंपरिक सैन्य रणनीति विफल हो चुकी है। 1947, 1965, 1971 और 1999 में भारत ने उसे सैन्य मोर्चे पर हराया। इसके बाद ISI ने नया मोर्चा चुना — हाईब्रिड वॉरफ़ेयर का। इसमें मीडिया, शिक्षा, सिनेमा, सोशल मीडिया और NGO के ज़रिए भारत के भीतर भारत-विरोधी विचारों को बोया जाता है।
 
‘Indian administered Kashmir’ जैसे शब्द इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इससे केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि धूमिल नहीं होती, बल्कि देश के युवाओं के मन में संदेह और असमंजस उत्पन्न होता है। जब TOI या Deccan Herald जैसे अखबार यह शब्द उपयोग करते हैं, तो यह आम आदमी को भ्रमित करता है — क्या कश्मीर वास्तव में भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है?
 
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मोदी सरकार ने Article 370 हटाकर राजनीतिक साहस का परिचय दिया। लेकिन केवल कानूनी निर्णय ही काफी नहीं होते। विचारधारा और नैरेटिव की लड़ाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। सरकार को 'Bharat Narrative Commission' जैसा एक निकाय बनाना चाहिए जो मीडिया, शिक्षा और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भारत-विरोधी नैरेटिव्स की पहचान कर उनके विरुद्ध क़दम उठाए।
इसके साथ ही राष्ट्रीय मीडिया नीति में यह स्पष्ट किया जाए कि कश्मीर भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग है। किसी भी शब्द या भाषा जो इसके विपरीत संकेत दे, उसे राष्ट्रीय विरोध समझा जाएगा।
 
जब 16-17 साल के छात्र Instagram या YouTube पर “IOK” या “Free Kashmir” जैसे शब्द पढ़ते हैं, तो वे धीरे-धीरे राष्ट्र-विरोधी नैरेटिव की गिरफ्त में आ जाते हैं। और यही है Broken Windows Theory का वास्तविक प्रभाव — एक शब्द की चूक, एक खिड़की की टूट-फूट, और फिर पूरी बिल्डिंग पर कब्जा।
 
पहले मीडिया 'IOK' या ‘Indian administered Kashmir’ कहता है, फिर कॉलेज कैंपस 'Free Kashmir' के नारे लगाते हैं, फिर NGOs उसे 'human rights issue' बनाते हैं, और फिर एमनेस्टी जैसे संगठन उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाते हैं। इस श्रृंखला की शुरुआत वही टूटी खिड़की करती है — यानी मीडिया का पहला अपराध।
 
भारत अब विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन यह केवल अर्थव्यवस्था या सैन्य शक्ति से संभव नहीं होगा। भारत को वैचारिक रूप से भी मजबूत होना होगा। देश की अखंडता केवल सीमाओं पर नहीं, शब्दों में भी सुरक्षित रखी जाती है। और जब वही शब्द शत्रु के हाथ में हों, तो खतरा दोगुना हो जाता है।
 
सरकार को, समाज को, और हर जागरूक नागरिक को यह समझना होगा — कश्मीर पर “Indian administered Kashmir” कहना केवल एक 'लिखने की भूल' नहीं है; यह विचारधारा की गद्दारी है। हमें हर टूटी खिड़की को तुरंत ठीक करना होगा, वरना पूरी इमारत हमारे देखते-देखते ढह सकती है।