भारत के लिए गर्व की बात है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के 12 ऐतिहासिक किलों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया है। यह फैसला पेरिस में हुई 47वीं वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में लिया गया। ये किले सिर्फ पत्थर की दीवारें नहीं, बल्कि स्वराज, युद्धनीति और आत्मगौरव की प्रतीक हैं।
इन किलों को भारत की 44वीं विश्व धरोहर के रूप में मान्यता मिली है। यह सम्मान हमारे इतिहास और संस्कृति के लिए बड़ी उपलब्धि है।
शिवाजी महाराज के ये 12 किले महाराष्ट्र और तमिलनाडु में फैले हुए हैं। इनमें रायगढ़, प्रतापगढ़, पन्हाला, शिवनेरी, लोहगढ़, साल्हेर, सिंधुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, विजयदुर्ग, खांदेरी, गिंजी और तोरणा जैसे किले शामिल हैं।
ये किले सिर्फ सुरक्षा के लिए नहीं बने थे, बल्कि ये प्रशासन, न्याय और सैन्य रणनीति के केंद्र थे। शिवाजी ने इन्हें स्वराज का आधार बनाया।
शिवाजी ने किलों की योजना तीन स्तरों में बनाई थी। पहले स्तर में राजगढ़, रायगढ़, तोरणा जैसे पहाड़ी किले थे, जो शासन और राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र थे। दूसरे स्तर पर समुद्री किले जैसे सिंधुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग और खांदेरी थे, जो विदेशी हमलों से तटीय इलाकों की रक्षा करते थे। तीसरे स्तर में दक्षिण भारत के किले गिंजी और वेल्लोर शामिल थे, जो शिवाजी के दक्षिणी अभियान के दौरान मजबूती का स्तंभ बने।
सह्याद्रि की पहाड़ियां, घने जंगल और गहरी घाटियां इन किलों को प्राकृतिक सुरक्षा देती थीं। शिवाजी ने इन इलाकों की भौगोलिक विशेषताओं का पूरा फायदा उठाया। मानसून के दौरान दुश्मन इन किलों तक पहुंच नहीं पाते थे, जबकि मराठा सैनिक इन रास्तों से अचानक हमला कर सकते थे।
हर किले में तीन अधिकारी नियुक्त किए जाते थे – हवलदार (सैनिक), सबनीस (वित्त), और कारखानीस (रसद)। इससे कोई भी अधिकारी अधिक शक्ति नहीं जमा कर पाता था और पारदर्शिता बनी रहती थी। ये अधिकारी नियमित रूप से बदले जाते थे ताकि भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर रोक लग सके।
पन्हाला के अंबरखाना जैसे विशाल अन्न भंडार महीनों की घेराबंदी के दौरान भी किले को आत्मनिर्भर बनाए रखते थे। चट्टान काटकर बनाए गए जलकुंड पूरे साल पानी का स्रोत बने रहते थे।
इन किलों में गुप्त सुरंगें होती थीं, जिनसे संकट के समय सैनिक बाहर निकल सकते थे या हमला कर सकते थे। ऊंचे किलों पर धुएं, झंडों और दर्पणों से संकेत भेजे जाते थे, जिससे एक किले से दूसरे किले तक सूचना तेजी से पहुंचाई जा सके।
शिवाजी ने समुद्री किलों को भी उतनी ही अहमियत दी। सिंधुदुर्ग, खांदेरी और कुलाबा जैसे किले समुद्री व्यापार की रक्षा करते थे और विदेशी ताकतों पर नजर रखते थे। इससे अंग्रेज, पुर्तगाली और सिद्दी जैसे दुश्मनों को तटीय क्षेत्रों से दूर रखा गया।
शिवाजी महाराज के ये किले आज भी देशभक्ति, दूरदर्शिता और संगठन शक्ति का प्रतीक हैं। यूनेस्को की मान्यता इस बात का प्रमाण है कि शिवाजी का स्वराज अब सिर्फ महाराष्ट्र या भारत का नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गया है।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़