राहुल गांधी के एक साल का नेता प्रतिपक्ष कार्यकाल: नाकामियों, विवादों और छुट्टियों से भरा एक और साल

विवादित बयानों से संसद और जनता दोनों में भरोसा खोया, विपक्ष की सबसे बड़ी कुर्सी को भी हल्के में लिया!

The Narrative World    05-Jul-2025
Total Views |
Representative Image
 
2 जुलाई को कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी के एक साल पूरे होने का जश्न मनाया। लेकिन यह जश्न किसी बड़ी उपलब्धि का नहीं, बल्कि हार के बाद मिली जिम्मेदारी का था। 2024 के आम चुनावों में तीसरी बार करारी हार के बाद राहुल गांधी को यह पद मिला, जिसे पार्टी अब "राजनीति में प्यार की जीत" बताकर महिमामंडित करने की कोशिश कर रही है।

 
लेकिन सच्चाई यह है कि राहुल गांधी का यह एक साल भी उनके अब तक के राजनीतिक करियर की तरह असफलताओं और विवादों से ही भरा रहा। कांग्रेस के लिए यह एक और साल रहा, जिसमें न तो कोई बड़ी जीत मिली और न ही कोई भरोसेमंद नेतृत्व उभर कर आया।
 
Representative Image
 
पिछले एक साल में जितने भी चुनाव हुए, उनमें कांग्रेस या तो हारी या फिर गठबंधन के भरोसे टिकी रही। झारखंड को छोड़ दें तो आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। हरियाणा में जहां राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का सबसे ज़्यादा प्रचार हुआ, वहां पार्टी सिर्फ़ 12 में से 4 सीटें ही जीत पाई।
 
महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस की हालत दयनीय रही। दिल्ली नगर निगम चुनावों में भी पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी। कुल मिलाकर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक 'वोट काटने वाली पार्टी' बनकर रह गई है।
 
राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं, लेकिन उनकी संसद में मौजूदगी औसत सांसदों से भी कम रही। पूरे साल में उन्होंने सिर्फ़ 8 बहसों में हिस्सा लिया, जबकि राष्ट्रीय औसत 15 है। उन्होंने एक भी निजी विधेयक संसद में पेश नहीं किया। मानसून और शीतकालीन सत्र में उनकी संयुक्त उपस्थिति 50% से भी कम रही।
 
 
Representative Image
 
इसके उलट राहुल गांधी ने पिछले साल 40 से ज्यादा दिन विदेशों में बिताए। लंदन, अमेरिका, वियतनाम जैसे देशों में घूमते हुए वे भारत सरकार और सेना पर सवाल उठाते रहे। अमेरिका में तो उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की तुलना सीरिया और इराक से कर दी थी। उनकी इन टिप्पणियों का इस्तेमाल पाकिस्तानी मीडिया ने भारत विरोधी प्रचार के लिए किया।
 
दिसंबर 2024 में राहुल गांधी ने संसद में मनुस्मृति को लेकर विवादित बयान दिया, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। इसके चलते ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने उन्हें सनातन धर्म से निष्कासित कर दिया। अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने भी वीर सावरकर पर की गई टिप्पणी के लिए उन्हें फटकार लगाई और चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसे बयान देने पर स्वतः संज्ञान लिया जाएगा।
 
 
Representative Image
 
ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर समझौता हुआ, तब राहुल गांधी ने यह दावा कर दिया कि यह अमेरिका के दबाव में हुआ। सरकार द्वारा खंडन करने के बावजूद उन्होंने यह झूठा बयान दोहराया, जिसे पाकिस्तानी मीडिया ने भारत को नीचा दिखाने के लिए खूब उछाला।
 
राहुल गांधी का एक साल का नेता प्रतिपक्ष कार्यकाल भी उनकी पुरानी छवि के अनुरूप रहा; नतीजों से खाली, विवादों से भरा। कांग्रेस पार्टी अगर वाकई फिर से खड़ी होना चाहती है, तो उसे 'परिवार' से बाहर आकर किसी ऐसे नेता को चुनना होगा जो राजनीति को पूरा समय और गंभीरता दे सके। वरना आने वाले साल भी ऐसे ही जश्नों में बीतते रहेंगे, जिनमें जश्न की कोई असली वजह नहीं होगी।
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़