मालेगांव बम धमाके में 17 साल बाद कोर्ट का फैसला आया है। सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया है। सबूतों के अभाव में केस टिक नहीं पाया।
इस फैसले से एक बार फिर देश में उस समय की राजनीति याद आ गई जब "हिंदू आतंकवाद" शब्द गढ़ा गया था। उस वक्त केंद्र में यूपीए सरकार थी।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सबसे पहले इसे आरएसएस से जोड़ने की कोशिश की थी। उन्होंने इसे "बम बनाने वाली फैक्ट्री" तक कह डाला था।
उनका आरोप सिर्फ मालेगांव तक सीमित नहीं था। उन्होंने अजमेर, समझौता एक्सप्रेस और अन्य मामलों में भी हिंदू संगठनों को घसीटा था।
वहीं, अमेरिका से लीक हुए दस्तावेजों ने भी चौंकाने वाले खुलासे किए थे। राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत से बातचीत में कहा था कि कट्टरपंथी हिंदू समूह लश्कर से भी खतरनाक हैं।
इतना ही नहीं, यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने भी अमेरिकी एफबीआई डायरेक्टर से "हिंदू चरमपंथ" पर चर्चा की थी।
ये बातें तब हुईं जब महाराष्ट्र एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को गिरफ्तार किया था। बाद में इन्हीं आरोपियों को कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया।
जांच की जिम्मेदारी जब एनआईए को दी गई, तो पहले की जांच में कई खामियां सामने आईं। आरोप साबित करने वाले गवाह ही मुकरते चले गए।
एनआईए ने माना कि सबूत नाकाफी थे। यहां तक कि जिस बाइक को लेकर आरोप लगाए गए, वो धमाके से काफी पहले ही किसी और के पास थी।
2017 में साध्वी प्रज्ञा को हाईकोर्ट से ज़मानत मिल गई। कर्नल पुरोहित को भी सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी। जांच की कमियां खुलकर सामने आने लगीं।
2019 में साध्वी प्रज्ञा ने लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। जनता ने उन्हें आतंकवादी नहीं, जनप्रतिनिधि चुना। यह एक बड़ा संकेत था।
अंततः कोर्ट ने कहा कि शक के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती। न कोई ठोस सबूत मिला, न कोई गवाह मजबूती से खड़ा रह सका।
इस फैसले के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। आतंकवाद और हिंदू विचारधारा में जमीन-आसमान का फर्क है।
यह वही दौर था जब 26/11 मुंबई हमले को भी कुछ नेताओं ने हिंदू संगठनों से जोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन अजमल कसाब की गिरफ्तारी ने सच्चाई उजागर कर दी थी।
कांग्रेस की गढ़ी गई "हिंदू आतंक" की थ्योरी आज पूरी तरह उजागर हो चुकी है। कोर्ट का फैसला इस झूठे नैरेटिव पर करारा तमाचा है।
अब जब अदालत ने साफ कह दिया कि केस में दम नहीं था, तो यह जरूरी हो गया है कि उस समय गढ़े गए झूठों और उनके पीछे के राजनीतिक इरादों पर भी सवाल उठें।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़