भारत ने विमानन क्षेत्र में एक नया इतिहास रचा है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) ने मास्को में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत HAL अब भारत में सुखोई सुपरजेट-100 (SJ-100) यात्री विमान का निर्माण करेगा। यह विमान दो इंजन वाला रीजनल जेट है, जो छोटी दूरी की उड़ानों के लिए डिजाइन किया गया है।
 
यह समझौता 27 अक्टूबर 2025 को हुआ। इसके साथ ही भारत लगभग 40 साल बाद फिर से नागरिक विमान निर्माण की दिशा में आगे बढ़ा है। इससे पहले 1988 में AVRO HS-748 परियोजना समाप्त हुई थी। अब यह नई परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ विजन को और मजबूती देगी। HAL ने बयान जारी कर कहा कि यह समझौता भारत की सिविल एविएशन इंडस्ट्री में एक नए युग की शुरुआत करेगा।
 
यह साझेदारी भारत और रूस दोनों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। भारत के लिए यह अवसर पश्चिमी कंपनियों जैसे बोइंग और एयरबस के वर्चस्व से बाहर निकलने का है। वहीं रूस के लिए यह साझेदारी नई उम्मीद लेकर आई है। 2022 के बाद से पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहे रूस के लिए भारत न केवल उत्पादन का केंद्र बनेगा बल्कि वैश्विक बाजारों तक पहुंच का रास्ता भी खोलेगा।
 
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह परियोजना सफल होती है, तो दोनों देशों के बीच भविष्य की हाई-टेक परियोजनाओं के लिए यह एक मिसाल बन सकती है। आने वाले समय में MC-21 जैसे आधुनिक रूसी विमानों का उत्पादन भी भारत में संभव हो सकता है।
 
 
 
 
भारत के घरेलू विमानन बाजार में अगले दस वर्षों में 200 से अधिक रीजनल जेट की जरूरत पड़ेगी। सरकार की उड़ान (UDAN) योजना के तहत छोटे शहरों को जोड़ने के लिए यह विमान बिल्कुल उपयुक्त रहेगा। सुखोई SJ-100 छोटे रनवे और क्षेत्रीय हवाई अड्डों के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे यह भारत की बढ़ती हवाई कनेक्टिविटी जरूरतों को पूरा करेगा।
 
हालांकि यह परियोजना बड़ी उम्मीदें लेकर आई है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। भारत को विमान निर्माण में पश्चिमी मानकों के बराबर गुणवत्ता, सुरक्षा और सर्टिफिकेशन हासिल करना होगा। इसके लिए HAL को स्थानीय जरूरतों के अनुसार डिजाइन और तकनीक में बदलाव करने होंगे।
 
सरकार ने इस परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ प्रोत्साहन और HAL के नासिक व कानपुर संयंत्रों में ढांचागत सुधार की दिशा में काम शुरू कर दिया है। इन कदमों से उत्पादन प्रक्रिया सुगम और तेज होगी।
 
यह विमान केवल सिविल उपयोग तक सीमित नहीं रहेगा। इसके ढांचे और इंजन प्लेटफॉर्म को भविष्य में ट्रांसपोर्ट, निगरानी या इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे सैन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे भारत को आत्मनिर्भरता और सुरक्षा दोनों मिलेगी।
 
यह समझौता भारत और रूस के बीच सहयोग को नई दिशा देता है। अब रक्षा और ऊर्जा के साथ-साथ दोनों देश सिविल मैन्युफैक्चरिंग में भी साझेदारी बढ़ा रहे हैं। यह कदम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को भी मजबूत करता है, जिसमें भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है। 
HAL और UAC के बीच यह समझौता सिर्फ एक MoU नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की नई उड़ान है। यह देश में रोजगार, अनुसंधान, और नवाचार को बढ़ावा देगा। साथ ही भारत को उपभोक्ता से निर्माता देश के रूप में स्थापित करेगा।
 
यह साझेदारी आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक एविएशन मानचित्र पर एक नई पहचान दिलाएगी, जहां भारत की फैक्ट्रियों में बने विमान दुनिया के आसमान में उड़ान भरेंगे।
 
लेख
शोमेन चंद्र