ट्रम्प की कूटनीतिक चाल पर भारत का स्पष्ट जवाब

मोदी ने ट्रम्प का न्योता ठुकराया, भारत ने फिर दोहराया… किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता न स्वीकार की है, न करेंगे!

The Narrative World    20-Jun-2025   
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हालिया कूटनीतिक चाल ने दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है।
 
बुधवार को व्हाइट हाउस में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ ट्रम्प की मुलाकात ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को फिर से सुर्खियों में ला दिया।
 
इस मुलाकात से पहले ट्रम्प ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कनाडा से लौटते समय वाशिंगटन रुकने का न्योता दिया था, जिसे मोदी ने अपनी व्यस्तताओं का हवाला देकर ठुकरा दिया।
 
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यह कदम भारत की उस दृढ़ नीति का प्रतीक है, जो किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को कड़ाई से अस्वीकार करती है।
 
दूसरी ओर, ट्रम्प के इस नाटकीय कदम ने मुनीर को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किल में डाल दिया है, खासकर तब जब उन्होंने इजरायल-ईरान संघर्ष में ट्रम्प के रुख का समर्थन करने का दावा किया।
 
यह घटनाक्रम न केवल ट्रम्प की अप्रत्याशित विदेश नीति को उजागर करता है, बल्कि भारत की कूटनीतिक परिपक्वता को भी रेखांकित करता है।
 
ट्रम्प की यह मुलाकात तब हुई जब वह कनाडा में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन को बीच में छोड़कर वाशिंगटन लौट आए थे।
 
सूत्रों के अनुसार, ट्रम्प ने इस मौके का इस्तेमाल भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की अपनी पुरानी महत्वाकांक्षा को फिर से हवा देने के लिए किया।
 
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प का यह कदम नोबेल शांति पुरस्कार की उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से प्रेरित था।
 
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व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एना केली ने दावा किया कि ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच “परमाणु युद्ध” को रोका, और मुनीर ने इस उपलब्धि के लिए ट्रम्प को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने की मांग की।
 
भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्पष्ट किया, “प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प को बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान न तो कोई मध्यस्थता हुई, न ही भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर कोई चर्चा हुई। सैन्य कार्रवाई का विराम भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीधे संवाद के जरिए हुआ, जो पाकिस्तान के अनुरोध पर शुरू हुआ।”
 
इस बयान ने ट्रम्प के दावों की हवा निकाल दी और भारत की उस नीति को मजबूती से सामने रखा, जो दशकों से कश्मीर और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर तीसरे पक्ष की भूमिका को नकारती रही है।
 
ट्रम्प की यह रणनीति भारत को एक कूटनीतिक जाल में फंसाने की कोशिश थी, जहां वह मोदी और मुनीर की एक संयुक्त तस्वीर खिंचवाकर वैश्विक मंच पर शांतिदूत की छवि बना सकें। लेकिन मोदी ने इस न्योते को ठुकराकर ट्रम्प के इस खेल को नाकाम कर दिया।
 
वहीं पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर के लिए यह मुलाकात एक दोधारी तलवार साबित हो रही है। एक ओर, व्हाइट हाउस में ट्रम्प की मेजबानी ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से मजबूत होने का दावा करने का अवसर दिया।
 
लेकिन दूसरी ओर, ट्रम्प के दावे कि मुनीर ने इजरायल-ईरान संघर्ष में उनके रुख का समर्थन किया, ने मुनीर को पाकिस्तान में विवादों के घेरे में ला खड़ा किया।
 
 
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पाकिस्तान की आधिकारिक नीति ईरान के प्रति समर्थन की रही है, और मुनीर ने हाल ही में अमेरिकी-पाकिस्तानी समुदाय को संबोधित करते हुए ईरान के साथ युद्ध में खुला समर्थन जताया था।
 
पाकिस्तान में पहले से ही मुनीर की आलोचना हो रही है, खासकर इमरान खान की पार्टी पीटीआई के समर्थकों द्वारा, जो उन्हें मानवाधिकार उल्लंघन का जिम्मेदार ठहराते हैं। ट्रंप के बयान ने इस आलोचना को और हवा दी है।
 
इस्लामाबाद के एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मुनीर के लिए यह मुलाकात एक कूटनीतिक जीत से ज्यादा एक संकट बन गई है। ट्रम्प ने उन्हें इजरायल समर्थक के रूप में पेश करके पाकिस्तान की जनता और सेना के बीच एक नया तनाव पैदा कर दिया है।”
 
यह स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब पाकिस्तान को ईरान के साथ अपने रणनीतिक हितों को संतुलित करना है, खासकर तब जब अमेरिका और इजरायल ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहे हैं।
 
वहीं भारत ने इस पूरे घटनाक्रम में अपनी कूटनीतिक परिपक्वता का शानदार प्रदर्शन किया है।
 
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मोदी का ट्रम्प का न्योता ठुकराना एक साहसिक कदम था, जिसने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को मजबूती से सामने रखा।
 
कूटनीति विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने टिप्पणी की, “ट्रम्प ने भारत को एक कूटनीतिक जाल में फंसाने की कोशिश की, लेकिन मोदी ने इसे भांप लिया। यह भारत की ताकत है कि वह अपनी शर्तों पर बात करता है, न कि किसी तीसरे पक्ष के दबाव में।”
 
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए अपनी सैन्य ताकत और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को पहले ही दुनिया के सामने रखा था।
 
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, के जवाब में भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर सटीक कार्रवाई की थी।
 
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इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए मजबूर किया, और भारत ने यह स्पष्ट किया कि यह फैसला पाकिस्तान की अपील पर लिया गया, न कि किसी बाहरी दबाव के कारण।
 
मोदी की ट्रम्प से 35 मिनट की फोन बातचीत में भी भारत ने अपनी स्थिति को मजबूती से रखा।
 
विदेश सचिव मिसरी ने बताया, “मोदी ने ट्रम्प को स्पष्ट किया कि भारत मध्यस्थता को कभी स्वीकार नहीं करेगा। ऑपरेशन सिंदूर का जवाब नपी-तुली और गैर-उग्रवादी कार्रवाई थी, जिसने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।”
 
इस बयान ने न केवल ट्रम्प के दावों को खारिज किया, बल्कि भारत की उस छवि को भी मजबूत किया, जो वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और स्वतंत्र शक्ति के रूप में उभर रही है।
 
ट्रम्प की विदेश नीति को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि यह मुलाकात अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए पाकिस्तान के हवाई अड्डों का इस्तेमाल करना चाहता है।
 
 
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दूसरों का कहना है कि ट्रम्प का यह कदम उनकी अप्रत्याशित और अवसरवादी नीति का हिस्सा है, जो वैश्विक मंच पर सुर्खियां बटोरने के लिए उठाया गया है।
 
वाशिंगटन के एक रणनीतिक विश्लेषक ने कहा, “ट्रम्प की नीति में स्थिरता की कमी है। वह भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौल रहे हैं, जो दक्षिण एशिया की जटिलताओं को समझने में उनकी नाकामी को दर्शाता है।"
 
ट्रम्प का यह रुख भारत के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। एक ओर, भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत हो रही है, जैसा कि फरवरी 2025 में मोदी की प्रस्तावित अमेरिका यात्रा से जाहिर है।
 
दूसरी ओर, ट्रम्प की अप्रत्याशित चालें भारत को सतर्क रहने के लिए मजबूर करती हैं।
भारत ने इस चुनौती का जवाब अपनी कूटनीतिक चतुराई से दिया है, लेकिन भविष्य में ट्रम्प की नीतियों का जवाब देने के लिए और सतर्कता बरतने की जरूरत होगी।
 
यह घटनाक्रम भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत का प्रतीक है। जहां ट्रंप अपनी नोबेल महत्वाकांक्षा और अप्रत्याशित नीतियों में उलझे हैं, और मुनीर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबावों का सामना कर रहे हैं, वहीं भारत ने अपनी कूटनीतिक और सैन्य ताकत का शानदार प्रदर्शन किया है।
 
मोदी का दृढ़ रुख न केवल भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर अपनी शर्तों पर खेलता है।