छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक ऐसा बदलाव देखने को मिला है जिसने नक्सलियों की खोखली विचारधारा की पोल खोलकर रख दी है।
एक दिन में 5 जिलों में 66 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया। इनमें से 49 पर कुल 2 करोड़ 27 लाख रुपए का इनाम था।
यह सिर्फ सरेंडर नहीं, यह माओवाद की हार है। यह दिखाता है कि अब नक्सली खुद समझ चुके हैं कि अगर हथियार नहीं डालेंगे तो खत्म कर दिए जाएंगे।
इनमें से कुछ ऐसे नाम हैं जो कभी जंगलों में खौफ का दूसरा नाम माने जाते थे। बीजापुर जिले में ही 25 नक्सलियों ने सरेंडर किया। इनमें से 23 पर 1 करोड़ 15 लाख रुपए का इनाम था।
इनमें सबसे बड़ा नाम है रामन्ना इरपा, जो ओडिशा स्टेट कमेटी और स्पेशल जोनल कमेटी का सदस्य था। उस पर 25 लाख रुपए का इनाम था। उसकी पत्नी रमे कालमु पर 8 लाख का इनाम था।
सुक्कू कालमु, बबलू मड़वी, कोसी मड़काम और रीना वंजाम जैसे कुख्यात नाम भी शामिल हैं, जिन पर 8-8 लाख रुपए का इनाम था।
दंतेवाड़ा जिले में 15 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। इनमें 5 पर कुल 17 लाख का इनाम था।
बुधराम उर्फ लालू कुहराम, जो डिविजनल कमेटी मेंबर है, और उसकी पत्नी कमली उर्फ मोती पोटावी भी शामिल हैं। उन पर क्रमश: 8 लाख और 5 लाख रुपए का इनाम था।
इसी के साथ दंतेवाड़ा में जून 2020 से शुरू हुए ‘लोन वर्राटू’ अभियान के तहत अब तक 1020 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इनमें से 254 पर इनाम था।
कांकेर में 13 नक्सलियों ने हथियार डाले, जिन पर कुल 62 लाख रुपए का इनाम था।
नारायणपुर में 8 नक्सलियों ने सरेंडर किया, जिन पर कुल 33 लाख का इनाम था।
इनमें वट्टी गंगा उर्फ मुकेश शामिल है, जो नॉर्थ ब्यूरो टेक्निकल टीम का प्रमुख था और जिस पर 8 लाख का इनाम था।
सुकमा में 5 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। कुल मिलाकर 66 नक्सलियों में से 27 महिलाएं थीं।
सभी सरेंडर करने वालों को सरकार की नई पुनर्वास नीति के तहत 50-50 हजार रुपए की तत्काल सहायता दी गई और उन्हें आगे की सुविधा भी दी जाएगी।
ये सरेंडर सिर्फ संख्या नहीं हैं, ये नक्सलियों की मानसिक हार के सबूत हैं।
उन्हें अब समझ में आ चुका है कि बंदूक उठाने से समाज नहीं बदलता। अब उन्हें अपनी जान प्यारी लग रही है, विचारधारा नहीं।
बस्तर में पुलिस का नया अभियान 'पुनर्वास से पुनर्जीवन' अब रंग ला रहा है।
बस्तर IG सुंदरराज पी ने कहा कि यह नक्सली संगठन पर बड़ी चोट है। उन्होंने बाकी नक्सलियों से भी अपील की कि वे हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौट आएं।
साफ है, अब जंगलों में नक्सलवाद का डर नहीं, विकास की हवा चल रही है। जो नक्सली कभी खुद को अजेय समझते थे, आज वे पुलिस के सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं।
वजह साफ है, उन्हें अब पता चल चुका है कि नक्सलवाद सिर्फ धोखा है, बर्बादी है और कुछ नहीं।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़