भारत में नक्सलवाद का साया चार दशक तक कई राज्यों पर छाया रहा। जंगलों में लाल झंडे के साए में पली कई पीढ़ियां हिंसा और डर के बीच बड़ी हुईं। लेकिन अब वह दौर पीछे छूटता दिख रहा है। देश "नक्सल मुक्त भारत" की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया है कि 31 मार्च 2026 तक भारत पूरी तरह नक्सलवाद से मुक्त होगा। 2025 में ही सुरक्षा बलों ने 210 से ज्यादा नक्सलियों को मार गिराया। इसमें अकेले छत्तीसगढ़ में अप्रैल तक 153 नक्सली मारे गए, जिनमें से 124 बस्तर क्षेत्र में मारे गए।
अब असली लड़ाई… भरोसा और विकास की
नक्सली हिंसा को खत्म करना एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन इसके बाद की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बड़ी है। अब वक्त है दिलों को जोड़ने, टूटे भरोसे को लौटाने और ऐसे विकास की कहानी लिखने का, जिसमें हर व्यक्ति खुद को शामिल महसूस करे।
दशकों तक हिंसा, डर और वैचारिक कट्टरता में जी रहे लोगों को मुख्यधारा में लाना आसान नहीं होगा। सिर्फ आर्थिक मदद या नौकरी देने से बात नहीं बनेगी। मानसिक रूप से ज़ख्मी लोगों के लिए विशेष काउंसलिंग, सामूहिक संवाद और गहन मनोवैज्ञानिक सहायता की ज़रूरत होगी।
इन इलाकों में "मन के घाव" सबसे गहरे हैं। बच्चों ने बचपन में ही बम और बंदूक देखी है। गांवों ने अपने नौजवानों को नक्सली बनते देखा है, अपने बुजुर्गों को गोली खाते देखा है। ऐसे में केवल विकास योजनाओं से भरोसा नहीं बनेगा।
लोगों से ही जुड़े समाधान… भरोसे की बुनियाद
समाधान भी उन्हीं लोगों से निकलना होगा जिनकी ज़िंदगी इससे जुड़ी रही है। स्थानीय युवाओं को काउंसलर बनाकर गांवों में संवाद चलाना होगा। राज्य को अब केवल ‘सुरक्षा’ देने वाले के रूप में नहीं, बल्कि ‘सुनने और समझने वाले साथी’ के रूप में दिखना होगा।
मोबाइल लीगल एड क्लिनिक, भूमि विवादों के त्वरित समाधान, पंचायत स्तर पर जवाबदेही बढ़ाना जैसे कदम भरोसा लौटाने में मदद कर सकते हैं। राज्य और जनता के बीच की दूरी को कम करने के लिए ऐसे उपाय ज़रूरी हैं।
सत्ता में हिस्सेदारी… संसाधनों पर हक
नक्सलवाद की जड़ें अक्सर जनजाति इलाकों में रही हैं, जहां लोगों को लगता रहा कि उनके संसाधनों का दोहन हुआ, लेकिन उन्हें हिस्सेदारी नहीं मिली। अब वक्त है इस सोच को बदलने का।
पेसा कानून और वन अधिकार कानून को कागज़ से जमीन पर उतारना होगा। ग्राम सभाओं को सिर्फ सलाह देने वाला मंच नहीं, बल्कि निर्णय लेने वाली इकाई बनाना होगा। जब गांव खुद तय करेंगे कि उनके संसाधनों का कैसे उपयोग हो, तब ही असली स्वराज होगा।
नई आर्थिक दिशा… सिर्फ सड़कें नहीं, अवसर भी चाहिए
सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में एलडब्ल्यूई इलाकों में ढांचागत विकास पर काफी काम किया है। 30 सबसे प्रभावित जिलों में 1,007 बैंक शाखाएं, 937 एटीएम, 5,731 पोस्ट ऑफिस और 37,850 बैंकिंग प्रतिनिधि नियुक्त किए गए हैं। 48 आईटीआई और 61 स्किल डेवलपमेंट सेंटर शुरू किए गए हैं। 178 एकलव्य स्कूल और 1,143 जनजाति युवाओं को सुरक्षा बलों में भर्ती किया गया है।
लेकिन अब ज़रूरत है इन प्रयासों को अगले स्तर पर ले जाने की। जनजाति उत्पादों को बाजार से जोड़ने के लिए प्रोसेसिंग ज़ोन, फॉरेस्ट प्रोडक्ट के लिए वैल्यू एडिशन सेंटर और सीधा बाजार देने वाले मॉडल ज़रूरी हैं।
एक "जनजाति उद्यम निधि" बनाई जाए, जिसमें स्थानीय उद्यमियों को पूंजी, प्रशिक्षण और बाजार उपलब्ध कराया जाए। इससे सिर्फ रोजगार नहीं मिलेगा, बल्कि आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी।
लाल गलियारे से हरित विकास की ओर
अब वक्त है कि लाल गलियारा केवल अतीत की पहचान न रहे। यह इलाका हरित विकास का केंद्र बन सकता है। सोलर और विंड एनर्जी प्रोजेक्ट, ईको टूरिज्म, पारंपरिक हस्तशिल्प का डिजिटलीकरण, ऑर्गेनिक खेती जैसे मॉडल इस क्षेत्र को देश के लिए गौरव बना सकते हैं।
इसके लिए एक बड़ा सहयोग चाहिए – सरकार, समाज, उद्योग, शिक्षा और सबसे ज़्यादा स्थानीय जनता का। जैसे जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की राह दिखाई दे रही है, वैसे ही बस्तर, बीजापुर और सुकमा जैसे क्षेत्रों में भी यह नया सवेरा दिख सकता है।
एक नई शुरुआत… सबका साथ, सबका विश्वास
"नक्सल मुक्त भारत" सिर्फ एक सुरक्षा उपलब्धि नहीं है, यह भारत के सामाजिक और आर्थिक भविष्य की नींव रखने का मौका है। यह एक ऐसा बदलाव है जिसमें नफरत की जगह भरोसा, हिंसा की जगह संवाद और असमानता की जगह समावेश का सपना सच हो सकता है।
यह केवल सरकार का नहीं, पूरे देश का सपना है। अब यह हम सब पर है कि हम मिलकर इस सपने को सच्चाई में बदलें।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़