बांग्लादेश जलता रहा, यूनुस सरकार देखती रही: अल्पसंख्यकों पर कहर की कहानी

04 Aug 2025 11:43:20
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अगस्त 2024 से अगस्त 2025 तक का एक साल बांग्लादेश के इतिहास में अल्पसंख्यकों के लिए खौफनाक बन गया। प्रधानमंत्री यूनुस की सरकार के शासनकाल में जो कुछ भी हुआ, उसने 1971 के पाकिस्तानी हमलों की भी क्रूरता को पीछे छोड़ दिया।
 
देशभर में सुनियोजित ढंग से अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले किए गए। धार्मिक हिंसा, जातीय उत्पीड़न और नरसंहार जैसी घटनाएं खुलेआम हुईं। मंदिरों को तोड़ा गया, घरों को जलाया गया, महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और बेटियों को अगवा किया गया। और इस सबके बीच सरकार चुप रही।
 
एक साल का खौफनाक आंकड़ा
 
2,442 घटनाएं (अगस्त 2024 – जून 2025): बलात्कार, हत्या, आगजनी, मंदिरों पर हमला और ज़मीनों पर कब्जा जैसी घटनाएं राज्य की चुप्पी के बीच हुईं।
 
5 अगस्त 2025 को अकेले 1,452 हमले: यह साबित करता है कि एक दिन में इतने अत्याचार एक ‘धार्मिक नरबलि’ का संकेत है।
 
सिर्फ 16 दिनों में 2,010 हमले: 69 मंदिरों को नुकसान, 157 हिंदू परिवारों और व्यापारों को बर्बाद किया गया।
 
2025 के पहले छह महीने: 27 अल्पसंख्यकों की हत्या, 20 बलात्कार की घटनाएं, 59 धार्मिक स्थलों पर हमले हुए।
 
 
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जमीनी हकीकत
 
  • बरिशाल के बिशारकांडी में एक हिंदू परिवार को जान से मारने की धमकी देकर हमला किया गया।
  • हबीगंज में होनहार छात्रा मोंप्रिय सरकार को अगवा कर लापता कर दिया गया।
  • कुमिल्ला में घर में घुसकर महिला के साथ बलात्कार हुआ।
  • खिलखेत में सरकारी बलों ने दुर्गा मंदिर को नष्ट किया।
  • ठाकुरगांव में मनसा मंदिर पर हमला कर मूर्ति तोड़ी गई और आगजनी की गई।
 
इन सभी घटनाओं के पीछे यूनुस सरकार की कट्टर प्रशासनिक सोच और सांप्रदायिक राजनीति नजर आती है।
 
 
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सरकार ने खुद को धर्मनिरपेक्ष बताया, लेकिन हकीकत में इस्लामी कट्टरता को खुली छूट दी। कौमी मदरसों, जुमे के खुत्बों और सेना के जरिए हर जगह नफरत फैलाई गई। लालमोनिरहाट के एक थाना प्रभारी ने सार्वजनिक रूप से अल्पसंख्यकों को फांसी देने की धमकी दी। सेना के जवान ‘हरे कृष्ण’ मंत्र का मजाक बनाकर मंदिरों का अपमान कर रहे हैं।
यूनुस सरकार के राज में हिंदू, बौद्ध, ईसाई किसी को भी सुरक्षा नहीं मिली। अब सिर्फ विपक्षी नहीं, धार्मिक पहचान ही बलात्कार और हत्या की वजह बन गई है।
 
यह शासन धार्मिक आतंकियों की शरणस्थली और अल्पसंख्यकों के लिए एक ज़हरीला श्मशान बन गया है। अल्पसंख्यकों की लाशों पर टिकी इस सत्ता ने साबित कर दिया है कि यह तालिबानी मानसिकता का नया रूप है, जिसमें इंसानियत के लिए कोई जगह नहीं है।
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़
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